वीरू देवगन का बिना टिकट मुंबई आने से लेकर अजय देवगन को हीरो बनाने तक का सफर

जयपुर 27 मई 2019 फिल्म अभिनेता अजय देवगन के पिता वीरू देवगन का मुंबई में आज देहांत हो गया l उन्हें अंतिम श्रधांजलि देने के लिए बॉलीवुड के नामी सितारे सिन्नी देओल, बॉबी देओल, संजय दत्त,साजिद खान, शारुख खान सहित कई लोग पहुंचे हैl वीरू देवगन के लिए मुंबई की राह सरल नहीं रही l उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत की है l वह कई रातो तक भूखें रहे l गौरतलब है कि सन 1957 में 14 साल के वीरू देवगन बॉलीवुड में अपना मुकाम हासिल करने की चाह लिए l अमृतसर अपने घर से मुंबई के लिए भाग गए, बिना टिकट लिए मुंबई जाने के लिए फ्रंटियर मेल पकड़ ली और पकड़ें गये टिकट नहीं लेने के कारण दोस्तों के साथ हफ्ते भर जेल में रहे थेl

बाहर निकलने पर मुंबई शहर और भूख ने उनको तोड़ दिया थाl जहां उनके साथ आए कुछ दोस्त टूटकर अमृतसर वापिस लौट गए लेकिन वीरू देवगन नहीं गएl वह टैक्सियां धोने लगे और कारपेंटर का काम करने लगे, हौसला लौटने पर फिल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटने लगेl उन्हें हीरो बनना था लेकिन उन्हें जल्द ही समझ आ गया कि हिंदी फिल्मों में जो चॉकलेटी चेहरे हीरो और अभिनेता बने हुए हैं, उनके सामने उनका कोई चांस नहीं हैl वीरू देवगन ने अपने बेटे अजय देवगन को हीरो बनाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की हैl उन्हें कम उम्र से ही फिल्ममेकिंग, और एक्शन से जोड़ाl ये सब अजय के हाथों ही करवाते थेl

कॉलेज गए तो उनके लिए डांस क्लासेज शुरू करवाईं गईl घर में ही जिम बनावाया गयाl हॉर्स राइडिंग सिखाया और फिर उन्हें अपनी फिल्मों की एक्शन टीम का हिस्सा बनाने लगेl उन्हें बताने लगे कि सेट का माहौल कैसा होता हैl जिसके चलते आज अजय फिल्ममेकिंग को लेकर बहुत सक्षम हो पाए हैl उन्होंने इंकार (1977), मिस्टर नटवरलाल (1979), क्रांति (1981), हिम्मतवाला (1983), शहंशाह (1988), त्रिदेव (1989), बाप नंबरी बेटा दस नंबरी (1990), फूल और कांटे (1991) जैसी फिल्मों में एक्शन निर्देशन किया थाl

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