वास्तविक सुख और आनंद कैसे मिलेगा।

Edit – Roshan Jha

जयपुर 25 अगस्त 2020 – आश्चर्य होता है की यह संसार सिर्फ पैसों के पीछे भागता है। चारों ओर दुख और निराशा की किरण प्रस्फुटित होती है। कहीं एक दूसरे को परास्त करने, नीचा दिखाने की, तो कहीं, किसी को ठगने, मूर्ख बनाने की होड़ लगी है। कोई व्यवसाय के माध्यम से, तो कोई धर्म गुरु बनकर, तो कोई अन्य लोभ लालच देकर स्वार्थ साधने में लगा है‌‌।

आप नकारात्मक ऊर्जा संचालित कर संसार में सुखी कभी नहीं होंगे। अतः हमें सकारात्मक सोच लानी होगी‌l रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा की- “भूमि परत भा ढाबर पानी। जिमी जीवहीं माया लपटानी।।” जिस प्रकार से बारिश की बूंदे पृथ्वी पर जब पड़ती हैं तो, सुखी धूल मिट्टी में पानी से लिपटकर कीचड़ बन जाती हैं। उसी प्रकार हम सब पृथ्वी पर आकर माया से लिपट जाते हैं और अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं।

सवाल उठता है? कि वास्तविक स्वरूप और उसके रहस्य को कैसे जानेंगे? गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-“उपदेक्ष्यंती ते ज्ञाने ज्ञानीनस्ततत्वदर्शीन:” यानी वह ज्ञान कोई तत्वदर्शी व्यक्ति ही दे सकता है फिर दुनिया के सामने प्रश्न आता है कि वह तत्वदर्शी गुरु कहां मिलेगा? इसके नाम पर कई व्यवसाय खोल कर के बैठे हैं, तत्वदर्शी गुरु कैसे ढूंढोगे? संतो ने कहा कि- “इस तन में मन कहां बसे, निकसी जाए केही ठौर। गुरु गम हो तो,परख लो नहीं तो करो गुरु और।।” संसार में मन हमारा तमाम कार्यों में फंसा है इसकी तरंगे जब तक कोई गुरु अपनी युक्ति से रोकेगा नहीं तब तक जीव अशांत तथा दुखी रहता है। जिस तरह से चंदन के पेड़ से विषधर सर्प भी शांत हो लिपट जाता है।उसी प्रकार आपकी जिस दिन असली तत्वदर्शी गुरु से भेंट होगी,आप स्वत:शांत हो जाओगे और दिन-रात अपनी गृहस्थ जीवन चलाते हुए बाल बच्चों के साथ सुख पूर्वक रहते हुए, अनंत प्रेम के साथ गृहस्थ संत कहलाओगे।

 

लेखक – संजय सिंह- दार्शनिक (वरिष्ठ साधक) तथा आयकर व कानून विशेषज्ञ

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