राजस्थान के पांच जिलों में पोषण और शिक्षा के संकेतकों में आया 12% और 6% का सुधार

Editor-Manish Mathur

जयपुर 08 दिसंबर 2020 – टाटा ट्रस्ट्स ने आज यह घोषणा की है कि 2018 में शुरू की गई इसकी ‘मेकिंग इट हैपेन’ पहल ने राजस्थान के पांच जिलों में पोषण और शिक्षा के संकेतकों में क्रमश: 12% और 6% का सुधार किया है। इस पहल ने कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत 12% तक घटाने में सहायता की है और प्री स्कूल पंजीकरण को 6% बेहतर बनाया है। यही नहीं, मई 2018 से फरवरी 2020 के बीच आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति में 8 फीसदी का सुधार आया है।

‘मेकिंग इट हैपेन’ पहल राजस्थान के अलवर, धौलपुर, दौसा, करौली और टोंक जिलों में भारत सरकार की एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना का पूरक है। इस पहल के तहत पाया गया कि आईसीडीएस प्रोग्राम का लाभ पाने के लिए युवा मांओं और बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में जाना और वहां की गतिविधियों में शामिल होना जरूरी है। सामुदायिक भागीदारी और आंगनवाड़ी केंद्रों में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बच्चों के अनुकूल संरचना, उनके विकास पर नजर रखने वाले उपकरणों, कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता थी।

टाटा ट्रस्ट्स ने इस दिशा में ‘मेकिंग इट हैपेन’ के जरिए मां, नवजात शिशु और बाल पोषण (एमआईवाईसीएन) को बढ़ावा देने के लिए एक बहुद्देश्यीय तरीका अपनाया। इसमें शामिल हैं (i) मॉडल आंगनवाड़ी केंद्रों का विकास (नवीनीकरण) (ii) विकसित होती शुरुआती बचपन की शिक्षा (iii) क्षमता निर्माण को आगे बढ़ाना (iv) राजस्थान सरकार की पोषण II योजना का समर्थन (v) पंचायतों को जोड़ना।

  • मॉडल आंगनवाड़ी केंद्रों का विकास: 205 आंगनवाड़ी केंद्रों को बेहतर बनाया गया। इसके तहत उन्हें रंगने, साफ करने से लेकर नए उपकरणों से लैस करने के साथ उनकी मरम्मत का काम भी किया गया। नवीकृत आंगनवाड़ी केंद्रों में सहज कामकाज के लिए आवश्यक सामान मुहैया कराए गए।
  • विकसित होती शुरुआती बचपन की शिक्षा: शुरुआती बचपन की शिक्षा (अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन – ईसीई) या स्कूल से पहले की अनौपचारिक शिक्षा के पहलू पर ध्यान दिया गया क्योंकि यह आंगनवाड़ी स्तर पर आईसीडी द्वारा मुहैया कराई जाने वाली छह इंटीग्रल सेवाओं में से एक है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के साथ-साथ गैर सरकारी साझेदारों के लिए लगातार रिफ्रेशर ट्रेनिंग और ओरियंटेशन का आयोजन किया गया ताकि ईसीई घटक को मजबूत किया जा सके, तथा मुहैया कराई गई ईसीई सामग्री का उपयोग किया जा सके। ईसीई को बढ़ावा देने अभी तक 408 आंकनवाड़ी केंद्र और उनके कार्यकर्ता प्रशिक्षित किए जा चुके हैं, खासकर संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने पर। मार्च 2018 से फरवरी 2020 के बीच ईसीई का नामांकन 7% बढ़ा है।
  • क्षमता निर्माण को उन्‍नत बनाना: आंगनवाड़ी केंद्रों, आशा और एएनएम (एएए) का मेल और 266 जिला अधिकारियों, 666 ब्लॉक अधिकारियों, 1998 सेक्टर सुपरवाइजर और 7978 फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ प्रशिक्षण संभव कराया गया। बाद में, 7906 आंगनवाड़ी केंद्रों को उनके स्थानीय केंद्रों के नक्शे मुहैया कराए गए ताकि विशेष देखभाल की जरूरतमंद महिलाओं और बच्चों की पहचान की जा सके। इस प्रशिक्षण की प्रशंसा राजस्थान सरकार ने की थी और इसका विस्तार पांच अतिरिक्त जिलों में किया गया है।
  • राजस्थान सरकार की पोषण II योजना का समर्थन: राजस्थान सरकार की पोषण II योजना का समर्थन किया गया ताकि ठीक-ठाक और गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों की पहचान और उनका उपचार किया जा सके। इसके लिए ऊर्जा के मामले में सघन पोषक सप्लीमेंट दिए जाते हैं। यह हस्तक्षेप द ग्लोबल अलायंस फॉर इंप्रूव्ड न्यूट्रीशन, ऐक्शन अगेनस्ट हंगर और यूनिसेफ के साथ साझेदारी में था। गंभीर और ठीक-ठाक कुपोषण के मामले दूर करने के लिए राज्यव्यापी सरकारी नेतृत्व वाला कार्यक्रम शुरू करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य था। इसके लिए कनवर्जेन्ट और सामुदायिक आधार वाले रुख की व्यवस्था की गई। इस परियोजना, पोषण II के तहत राजस्थान के 20 जिलों के 48 ब्लॉक कवर किए गए। 2028 गांवों में 0-6 वर्ष के 375,533 बच्चों तक पहुंच बनाई गई। इनमें 10,344 बच्चे गंभीर कुपषोण के शिकार थे जिनका उपचार किया गया है और इनमें से 6,690 बच्चे ठीक हो चुके हैं।
  • पंचायतों को जोड़नापंचायतों को संवेदनशील बनाया गया और उन्हें अपने गांवों के आंगनवाड़ी केंद्रों के कामकाज में योगदान करने के लिए सक्रिय किया गया। कुल 1782 पंचायत राज इंस्टीट्यूट (पीआरआई) सदस्यों का ओरियंटेशन हुआ। स्थापना से 50% से ज्यादा गांवों के पीआरआई ने आंगनवाड़ी केंद्रों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार के लिए योगदान किया है। इनमें शौचालय को ठीक करवाना उन्हें काम करने लायक स्थिति में लाना, चारदीवारी, पीने के पानी की सुविधाएं और विद्युत आपूर्ति शामिल हैं जो कुपोषण मुक्त ग्राम पहल की दिशा में है।

डॉ. ईशा प्रसाद भागवत, प्रोग्राम मैनेजर (एमआईवाईसीएन) – द न्यूट्रीशन इनीशिएटिव (टीआईएनआई), टाटा ट्रस्ट्स ने कहाटाटा ट्रस्ट्स ने सफलतापूर्वक दिखा दिया है कि कैसे दुनिया का सबसे बड़ा पोषण कार्यक्रम आईसीडीएस अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता हासिल कर सकता है और इस महत्वपूर्ण आबादी समूह की पोषण बुनियाद रख सकता है। यह एक बहुक्षेत्रीय रुख है जिसने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया और एक साथ समुदायों को सक्रिय किया और इसे भारत सरकार के पोषण अभियान के लिए अच्छी सीख है।

डॉ. निलेश यादव, प्रोग्राम अधिकारी, न्यूट्रीशन, टाटा ट्रस्ट ने कहा, टाटा ट्रस्ट्स ने अपने मेकिंग इट हैपेन के जरिए हमेशायह प्रयास किया है कि राजस्थान में आंगनवाड़ी केंद्रों की सेवाएं बेहतर डिलीवरी के लिए कैसे क्षमता निर्माण और संसाधन तैयार करने में सहायता दी जाए। इस पहल के तहत जीवंत आंगनवाड़ी केंद्र तैयार करने के लिए एकीकृत रुख अपनाया जाता है। इसके लिए बुनियादी संरचना का बदलाव और उन्नयन किया जाता है तथा मुख्य काम करने वालों की क्षमता बढ़ाई जाती है। इससे समुदायों की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित होती है। खासकर कम उम्र की मांएं और बच्चे तथा पोषण सकारात्मक क्षेत्र का मांग एक स्थायी ढंग से प्रशस्त होता है।

टाटा ट्रस्ट्स ने राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी कुपोषण से निपटने के लिए एक बहुक्षेत्रीय रुख अपनाया है। कुपषोण से निपटने की ट्रस्ट की रणनीति एक एकीकृत रुख है जो तीन बुनियादी पहलुओं पर केंद्रित है: a) समुदायों के बीच पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करना ताकि सर्वश्रेष्ठ विकास को बढ़ावा दिया जा सके और कुपोषण से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों को कम किया जा सके; b) उपुयक्त संशोधनों और सहायता से पोषण के मौजूदा कार्यक्रमों और योजनाओं को मजबूत करना; तथा c) नीति निर्माताओं को सिफारिशें करने तथा डाटा आधारित पक्ष प्रचार और अनुसंधान आधारित उत्पादों का विकास करना तथा प्रौद्योगिकीय सहायता देना तथा डाटा एनालिटिक्स देना जिससे चुनौतियों से निपटने में मदद हो सके और देश के पोषण के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

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