भारत में मछली फार्म एंटीबायोटिक्स कीटनाशकों और भारी धातुओं से भरे हुए है – रिपोर्ट

Editor-Ravi Mudgal 

जयपुर 01 फरवरी 2021 –  फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशंस (एफआईएपीओ) और आल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्माल (एसीजीएस) की एक नई जांच में भारत में जलीय कृषि के बारे में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। यह पाया गया कि मछली और झींगा के 100 प्रतिशत खेतों  में सीसा और कैडमियम अपने खतरनाक स्तर पर हैं। एंटीबायोटिक दवाओं और कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग के कारण, न केवल रोग बेकाबू हो रहे हैं, बल्कि मछलियों के स्वास्थ्य पर ख़तरा हो रहा है और एएमआर के बढ़ते खतरे के साथ मछली पालन एक टाइम बम है।

एफआईएपीओ और एसीजीएस ने भारत में मछली पालन में 10 उच्चतम उत्पादक राज्यों में लगभग 250 मछली और झींगा फ़ार्म की जांच की। इस जांच में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पांडिचेरी, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा में ताजे और खारे पानी के फ़ार्म और बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम में मीठे पानी के खेत शामिल है। यह जांच इसलिए की गयी थी जिससे भारत में पशु कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरे के मानकों पर मछली और झींगा खेतों की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके।

बिहार में, पूर्वी चंपारण, मुज़फ़्फ़रपुर, बेगूसराय और पटना जिलों में 20 मछली पालन के क्षेत्रों को शामिल किया गया था। मछली के 100% फ़ार्म में सीसा और कैडमियम के जहर का स्तर 100 प्रतिशत था, जो सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य के खतरों पर बहुत ही खराब था (0।25 / 1)।

इसके अतिरिक्त, 100% मछली फ़ार्म में कही भी पानी बाहर निकलता नहीं है, इसका मतलब है कि गंदे पानी के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। कई मछुआरों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें हर साल फैलने वाली बीमारियों और बाढ़ के कारण काफी नुकसान होता है। सभी मछली फार्मों में बुनियादी रखरखाव की कमी थी और कूड़े थे और मछलियों के फ़ार्म के पास खुले में शौच होता रहता है । सभी मछली फार्मों में ऑक्सीजन के खराब स्तर थे, जिसका अर्थ हुआ कि वह एक एक सांस लेने के लिए परेशान हो रही थीं ।

कोलकाता मॉडल के पालन के साथ, पटना ने हाल ही में एक सीवेज के इस्तेमाल वाले मत्स्यपालन को इस्तेमाल किया है। मांगुर कैटफ़िश जैसी प्रतिबंधित मछली प्रजातियों को एंटीबायोटिक दवाओं, कीटनाशकों और कीटनाशकों के कम इस्तेमाल के साथ पाला गया।

इस तरह की बेतरतीब आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं के कारण एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध का जोखिम बढ़ जाता है। एएमआर एक ऐसी स्वास्थ्य आपदा है जिसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हाल ही में, कुछ मछली वैज्ञानिकों ने एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) के बारे में अधिक जागरूकता का आह्वान किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि कैसे मछलियों और झींगुरों से मनुष्यों में एएमआर बैक्टीरिया ना जा पाए।

एफआईएपीओ की कार्यकारी निदेशक वर्दा मेहरोत्रा कहती हैं, “हमने इस बढ़ते क्षेत्र में चौंकाने वाली स्थितियाँ पाई हैं। मछलियों को बिना किसी कचरा प्रबंधन प्रक्रिया के, गंदी बाड़ों में रखा जाता है। उन्हें जिंदा ही काट दिया जाता है। इन मछलियों के खेतों से दूषित पानी को ही स्थानीय जलस्रोतों और मुहल्लों में छोड़ा जाता है जिसके कारण परजीवी बढ़ते हैं, जिससे मछली की आबादी के साथ-साथ मनुष्यों को भी नुकसान होता है। ”

आल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्माल की प्रबंध न्यासी, अंजली गोपालन का कहना है कि “हम अपनी जीवनशैली और कामों में उन समस्याओं को समझना ही नहीं चाहते हैं, जो जलीय जीव महसूस करते हैं, क्योंकि वह मानव सभ्यता से बहुत दूर रहते हैं। देश के प्रशासन और राजनीतिक असंवेदनशीलता के कारण जलीय सफाई और मछलियों की सेहत के प्रति जनता की संवेदनशीलता एवं उद्योग की संवेदनशीलता का अभाव ही हमें दिखता है।  यही कारण है कि निश्चित ही यह ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए जिससे हम एक जलीय आपदा से बच पाएं।”

मांस बाजारों की अस्वाभाविक स्थितियों के कारण कई बार महामारी, मलेरिया, टाइफाइड और पीलिया जैसी स्थितियां पैदा होती हैं।

वैज्ञानिक, वक्ता और ईपीएफओ के सलाहकार डॉ। जोनाथन बालकोम्बे, कहते हैं “एक्वाकल्चर मछलियों की फैक्ट्री फार्मिंग है, इसमें भी वही समस्याएं आती हैं जो जमीन पर चलने वाले जानवरों के साथ आती हैं ऐसे भीड़, तनाव, बीमारी, दर्द और मृत्यु। यदि आप उस का समर्थन नहीं करना चाहते हैं, तो मछली न खरीदें” ।

एफआईएपीओ के बारे में

फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशंस (एफआईएपीओ) भारत में सर्वोच्च पशु अधिकार संगठन है। आन्दोलन के लिए, आन्दोलन के द्वारा निर्मित  एफआईएपीओ ऐसा संगठन है जिसमें पूरी भारत में 165 से अधिक सदस्य और राष्ट्रीय स्तर पर 200 से अधिक समर्थक संगठन हैं।

एफआईएपीओ उस आन्दोलन में आगे रहा था जिसने व्यावसायिक मनोरंजन के लिए डॉल्फिन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राजी किया। इसने आंध्र प्रदेश में 40,000 गायों के साथ प्रस्तावित मेगा डेयरी को भी नहीं बनने दिया और अन्य गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवकों के साथ मिलकर पूरे भारत में 16 सर्कस के 150 से अधिक जानवरों को बचाया। एफआईएपीओ अपने कार्यों से डेयरी उद्योग, गौशालाओं, मांस की दुकानों, आदि की भयावह स्थितियों को जनता के सामने लाता है।

एसीजीएस के बारे में: आल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्माल फरीदाबाद में एक गाँव सिलाखरी में स्थित है वह एक गैर सरकारी संगठन है जो ऐसे 700 जानवरों ओ गुणवत्तापरक चिकित्सीय और पोषण वाली देखभाल दे रहा है, जिन्हें छोड़ दिया जाता है। एसीजीएस का मानना है कि जानवरों का भी यह अधिकार है कि वह एक क्रूरता से मुक्त जीवन जियें, उन्हें भी इंसानों की ही तरह संवेदनशील मना जाए तथा अन्य मुक्ति आंदोलनों के साथ उनके लिए वैश्विक सामाजिक न्याय के रूप में आवाज़ उठे। प्रबंध न्यासी अंजलि गोपालन ने भारत में पशु अधिकारों पर जन मंचों पर बोलने के लिए अपने मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में अपनी स्थिति का इस्तेमाल किया। साल 2016 में एसीजीएस सड़क के कुत्तों को मारे जाने पर भारत के उच्चतम न्यायालय में एक याचिकाकर्ता बना था।

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