तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ानें में मृदा का महत्व

Editor-Manish Mathur

जयपुर 05 फरवरी 2021  -महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के तहत तिलहनी फसलों की उन्नत प्रौद्योगिकी पर आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण का आरंभ आज 05 फरवरी, 2021 को अनुसंधान निदेशालय में किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रायोजक कृषि विभाग, राजस्थान सरकार है तथा इस में कृषि विभाग, उदयपुर जिले के 20 सहायक कृषि अधिकारी एवं कृषि पर्यवेक्षक भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि डाॅ. बी. एस. द्विवेदी, निदेशक, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग योजना, नागपुर ने बताया कि विकास की दौड़ में मिट्टी के स्वास्थ्य पर कम ध्यान देने की वजह से मृदा के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है, जिससे पोषक तत्वों की कमी हो रही है, परंतु पोषक तत्वों के उचित प्रबंधन से कृषि में पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि मृदा में नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस एवं गंधक का सीधा संबंध जैविक पदार्थ से होता है, यदि मृदा में जैविक पदार्थ की उचित मात्रा हो तो इन पोषक तत्वों की मृदा में कमी नहीं आएगी। तिलहनी फसलों की गुणवत्ता सुधार हेतु सल्फर की महत्ता पर जोर दिया। भारत की 33 प्रतिशत मृदाओं में सल्फर की कमी है, जिसकों दूर करना नितान्त आवश्यक है। इसके साथ ही डॉ. द्विवेदी ने बताया कि न्यूनतम जुताई एवं मृदा की सतह को ढ़ककर रखने से  मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को संरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने उत्तम गुणवत्ता वाले जैविक आदानों जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट इत्यादि का प्रयोग करने  एवं सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति पर जोर दिया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डाॅ. एस. के. शर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि तिलहनी फसलों का उत्पादन अभी 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से ज्यादा नहीं हो रहा है, हम इसे उन्नत तकनीकों के माध्यम से बढ़ाकर 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक कर सकते है। साथ ही उन्होंने बताया कि देश की मृदाओं में जैविक कार्बन की कमी है एवं लगभग 80 प्रतिशत नत्रजन एवं 50 प्रतिशत जिंक की कमी है।

डाॅ. दिलीप सिंह, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि हमारे राज्य की मुख्य तिलहनी फसलें जैसे – सोयाबीन, मूंगफली, तिल, सरसों है, जिनकी उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ पर राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग योजना के क्षेत्रीय केन्द्र, उदयपुर के वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं जिसका लाभ विश्वविद्यालय को भी मिलेगा।

प्रशिक्षण प्रभारी तथा क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डाॅ. रेखा व्यास ने सभी अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया और बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की शुरूआत सन् 2007 में केन्द्र सरकार द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य गेहूँ, चावल व दालों की उत्पादन व उत्पादन बढ़ा कर देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना था और वर्ष 2014-15 में तिलहन और पाम आयल को भी इस मिशन में शामिल कर लिया गया ताकि देश में वनस्पति तेलों का उत्पादन बढ़ा कर आयात में 2022 तक 15 प्रतिशत की कमी लाई जा सके। इस हेतु कृषकों को उत्पादन की नई तकनीकें, उन्नत किस्में, उन्नत प्रौद्योगिकी की जानकारी पहुंचाना आवश्यक है।

डाॅ. सुभाष मीणा, सह आचार्य ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा सभी आगन्तुओं का धन्यवाद डाॅ. राम हरि मीणा, सह. आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, मृदा विज्ञान विभाग ने ज्ञापित दिया एवं कार्यक्रम में सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. के. एल. तोतावत, डाॅ. बी. एल. जैन एवं राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग योजना के क्षैत्रीय केन्द्र, उदयपुर के वैज्ञानिक एवं मृदा विज्ञान विभाग के संकाय सदस्यों ने भाग लिया।

About Manish Mathur