राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती की वैज्ञानिक तकनीकें पर प्रशिक्षण

Editor-Manish Mathur 

जयपुर 12 फरवरी 2021  – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्ªीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती की वैज्ञानिक तकनीकें पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन 12 फरवरी, 2021 को अनुसंधान निदेशालय में किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में गोगुन्दा तहसील के तिरोल एवं बांसलिया गांव के 35 किसानों ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. एस. के. शर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि हमारा देश खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर बन चुका है लेकिन खाद्य गुणवŸाा की दृष्टि से हम काफी पीछे हैं। पिछले पांच वर्षों में एफ एस एस ए आई  तथा ग्लोबल गेप स्टेण्डर्डस को खाद्य पदार्थों पर लागू किया जा रहा है। कृषि अनुसंधान में स्वास्थ्यवर्धक खाद्यों एवं मृदा उत्पादकता टिकाऊ बनाने वाले उपायों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जैविक कषि में परिवर्तन करने के लिए किसान को तीन वर्ष लगते हैं। आज बाजार में जैविक के नाम से कई उत्पाद बिक रहे हैं लेकिन प्रमाणीकरण का ‘‘जैविक लोगो’’ कुछ ही उत्पादों पर लगे हैं। बिना प्रमाणीकरण के जैविक उत्पादों का बाजार भाव कम मिलते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सब्जियाँ 50 से 70 प्रतिशत कीटनाशी अवशेष के कारण प्रदूषित हो रही है। 12.79 प्रतिशत नमूनों में कीटनाशी अवशेष पाए गये है। साथ ही उन्होंने बताया कि वर्तमान परिदृश्य में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, फलों, सब्जियाँ एवं बीजीय मसालों में कीटनाशी अवशेषों का पाया जाना, पर्यावरण प्रदूषण, मानव स्वास्थ्य के खतरा उत्पन्न होना गंभीर चिंता का विषय हैं। अतः जैविक खेती मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
डाॅ. रेखा व्यास, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान ने बताया कि जैविक कृषि में नवाचार द्वारा अधिक उत्पादन एवं आय ली जा सकती है, जिसमें मुख्यतया फार्म मशीनीकरण को बढ़ावा देना आवश्यक है। फार्म अवशेष पुर्नचक्रण, खरपतवार नियंत्रण तथा उत्पादन पश्चात् प्रसंस्करण की नई तकनीकों को जैविक खेती में शामिल कर उत्पादन लागत को कम करना होगा।
डाॅ. अरविन्द वर्मा, सह निदेशक अनुसंधान ने बताया कि विश्व तथा भारत में परम्परागत कम आदान वाली खेती, प्रगतिशील किसानों की रूचि तथा बाजार में जैविक उत्पादन की बढ़ती मांग की जानकारी दी साथ ही उन्होंने बताया कि जैविक खेती में व्यवसायिक स्तर आदानों का उत्पादन किया जा रहा है जिनमें कीटनाशक रसायनों व उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण व भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्यस हो रहा है, साथ ही फल, सब्जी व अनाज की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है इसलिए जैविक खेती वर्तमान समय की आवश्यकता है।
डाॅ. रोशन चैधरी, प्रशिक्षण प्रभारी ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को आर्गेनिक फूड की गुणवŸाा बनाए रखने के लिए जैविक आदानों (वर्मीवाश, वर्मीकम्पोस्ट, पंचगव्य, प्रोम, हर्बल जैव अर्क, बायोपेस्टीसाइड, तरल जैव उर्वरक, नीम उत्पाद, देशी अर्क तथा गौमूत्र आधारित जैव पेस्टीसाइड) को तैयार करने की विधि तथा गुणों की जानकारी दी गई। जैविक आदानों में पोषक तत्वों, पी.एच., ई.सी., कार्बन तत्व, भारी धातु आदि की न्यूनतम मानदण्ड़ों की जानकारी दी गई।
डाॅ. गजानन्द जाट, सहायक प्रोफेसर ने तरल एवं ठोस जैव उर्वरकों का जैविक खेती में उपयोग आदि के बारे में बताया। डाॅ. अमित त्रिवेेदी ने फसलों में जैविक विधियों से रोग प्रबंधन की जानकारी दी। साथ ही प्रशिक्षण में जैविक खेती में काम आने वाले जैविक उत्पाद, उत्पादन एवं उनकी गुणवŸाा की प्रायोगिक जानकारी दी।
डाॅ. रोशन चौधरी, प्रशिक्षण सह-प्रभारी ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा सभी आगन्तुओं का धन्यवाद ज्ञापित दिया।

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