मेरिल लाइफ साइंसेज ने देसी स्तर पर अनुसंधान से विकसित थिन-स्ट्रट बायोरिजॉर्बेबल स्कैफोल्ड, MeRes100 – BRS भारत में पेश किए

Editor-Ravi Mudgal

जयपुर, 10 मार्च, 2021 – मेरिल लाइफ साइंसेज ने आज अपने देसी अनुसंधान और विकास वाले बायोरिजॉर्बेबल स्कैफोल्ड (BRS) MeRes100 को भारत में पेश करने घोषणा की। बायोरिजॉर्बेबल स्कैफोल्ड मेटल के नहीं होते हैं और ना ही स्थायी जाली वाले ट्यूब होते हैं। ये स्टेंट जैसे होते हैं पर समय के साथ घुल जाते हैं। इससे पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि पहले से बाधित धमनी खुल गई है। इसके लिए एंजियोप्लास्टी की सामान्य प्रक्रिया अपनाई जाती है। थेरैपी का यह अभिनव विकल्प मरीजों के एक चिन्हित उपवर्ग का अर्थपूर्ण इलाज करा सकता है। इसे चरणों में, क्रमानुसार पेश किया जाएगा ताकि सर्वश्रेष्ठ चिकित्सीय व्यवहारों पर अनुपालन तथा चिकित्सीय अनुसंधान और दीर्घ अवधि के सबूत सुनिश्चित किए जा सकें।

इस समय MeRes100 को देश के 16 शहरों में पेश किया जा रहा है। इनमें मुंबई, दिल्ली, गुड़गांव, बैंगलोर, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद, लखनऊ, चंडीगढ़, मोहाली, जयपुर, कोच्चि और एड्डकड (केरल में), नागपुर तथा भुवनेश्वर शामिल है।

संजीव भट्ट, सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, कॉरपोरेट स्‍ट्रैटेजी, मेरिल लाइफ साइंसेज ने इस पर कहा, “हम MeRes100 BRS भारत में पेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और सुनिश्चित करेंगे कि इसकी डिलीवरी सही संकतों के साथ सही मरीजों को हो। हम सुनिश्चित करेंगे कि इसे धीरे-धीरे अस्पतालों में भी पहुंचया जाए, ताकि सर्वश्रेष्‍ठ नैदानिक परिणामों को बढ़ावा मिले, इसके लिए मामलों में सहायता के लिए प्रशिक्षित चिकित्सीय विशेषज्ञों की एक टीएम नियुक्त की जाएगी जो चिकित्सकों को प्रोटोकोल के बारे में जानकारी देगी ताकि बायोरिजॉर्बेबल स्टेंट इंप्लाटेंशन का काम सफलतापूर्वक किया जा सके। इन उपायों के जरिए हमारा लक्ष्य मरीजों के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणामों को बढ़ावा देना है।”

उन्होंने आगे कहा, “यही नहीं, BRS थेरैपी पर दीर्घ अवधि के अनुसंधान के समर्थन में हम एक बहुराष्ट्रीय, बहुकेंद्रीय, रैनडमाइज्ड चिकित्सीय परीक्षण, MeRethon RCT संभव करेंगे और MeRes100 की तुलना परंपरागत ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट से की जाएगी। करीब 2,000 मरीज पांच साल चिकित्सीय, एंजियोग्राफिक और ओसीटी इमेजिंग फॉलो अप करेंगे और बीआरएस थेरैपी के दीर्घ अवधि के चिकित्सीय सबूत और इसके लाभ प्राप्त करेंगे। मेरिल लाइफ साइंसेज भी एक बीआरएस क्लिनिकल फोरम का आयोजन करेगा। इसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एक्सपर्ट होंगे जो एक दूसरे को लगातार सर्वश्रेष्ठ व्यवहारों पर अपडेट करेंगे ताकि मरीज के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणाम हासिल हो।”

MeRes100 अब तक का पहला 100 माइक्रॉन थिन स्ट्रट BRS है जिसका विकास कॉरोनरी आर्टरी डिजीज के मरीजों के उपचार के लिए किया गया है। आज की तारीख तक इसे अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, रूस, यूरोप, कोरिया, चीन, ब्राजील और भारत में कुल 12 पेटेंट मिल चुके हैं। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय परीक्षणों से कई वर्षों की सुरक्षा और कार्यकुशलता डाटा से समर्थित MeRes100 को डीजीसीआई मंजूरी के साथ-साथ यूरोपियन सीई मंजूरी भी मिल चुकी है। इन परीक्षणों में MeRes-1शामिल है जिसका नेतृत्व मुख्य जांचकर्ता डॉ. अशोक सेठ करते हैं। आप प्रमुख भारतीय इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट हैं और फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन हैं। संस्थान ने अगली पीढ़ी की थिन स्ट्रट टेक्नालॉजी के फायदों की पुष्टि की है।

कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) जैसे कॉरोनरी हार्ट डिजीज भारत में मौत के अग्रणी कारणों में हैं। युवा भारतीय पुरुषों में कॉरोनरी हार्ट डिजीज की मौजूदगी दर पश्चिमी देशों के मुकाबले दूनी है। इसके अलावा, ऐसे सबूत हैं जिससे संकेत मिलता है कि भारतीयों में सीवीडी के प्रभाव की शुरुआत यूरोप के लोगों के मुकाबले कम से कम एक दशक पहले होती है।

डॉ. संजीब रॉय, डायरेक्टर कार्डियोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल जयपुर ने कहा, “मरीजों की खास अधूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नवीनता से संचालित समाधान की आवश्यकता बढ़ रही है। ऐसा करते हुए लगातार सुरक्षा और कार्यकुशलता वाले परिणाम की आवश्यकता है। भारत में कॉरोनरी आर्टरी डिजीज से प्रभावित होने वाले आयु समूहों में बदलाव आया है और कम उम्र के मरीजों के भी कॉरोनरी आर्टरी डिजीज से बीमार होने का पता चल रहा है। अक्सर ऐसा अस्वास्थ्यकर या तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण होता है। कार्डिएक डिजीज वाले बुजुर्ग समूह भी अनूठी समस्याएं पेश करते हैं। इनमें धमनी की एक ही जगह पर बार-बार होने वाला घाव तथा स्थायी इंप्लांटेंशन को लेकर हिचक शामिल है। बायोरिजॉर्बेबल स्कैफोल्ड अगली पीढ़ी के समाधान हैं जो इन मरीजों की जरूरतें पूरी करता है, टेक्नालॉजी और नवीनता का लाभ उठाकर ब्लॉकेज खोलता है और जरूरत की जगह पर दवा पहुंचाता है ताकि जख्म ठीक हो सके जबकि जख्म ठीक होने के बाद स्वाभाविक तरीके से घुल जाता है।”

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