2023 में अहमदाबाद मिलने के वादे के साथ एपिकॉन 2022 का समापन

इंसुलिन के इंजेक्शन की चुभन से मिल सकेगी शीघ्र ही निजात

650 से अधिक चिकित्सा सत्र आयोजित

जयपुर, 17 अप्रैल, 2022। सीतापुरा स्थित जेईसीसी में चल रहे 4 दिवसीय एसोसिएशन ऑफ फिजीशियन्स ऑफ इण्डिया की 77वीं कॉन्फ्रेंस ‘एपिकॉन-2022 का रविवार सम्पन्न हुआ। कोविड-19 के बाद यह पहला अवसर है इस आयोजन में देश-विदेश के 6000 से भी अधिक चिकित्सों ने भाग लिया तथा 950 विषय विशेषज्ञ चिकित्सकों ने चिकित्सा क्षेत्र में हुए नवीनतम बदलावों और नई चिकित्सा प्रणालियों पर अपने विचार साझा किए। समापन समारोह में आयोजन सचिव डॉ. पुनीत सक्सेना ने आयोजन को मील का पत्थर बताते हुए इसमें सहयोग के लिए आयोजन समिति के सदस्यों तथा सहभागिता करने वाले सभी सदस्यों का आभार जताया।

ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. के.के. पारीक और डॉ. अरविंद गुप्ता ने समापन समारोह के अवसर पर बताया कि एपिकॉन-2023 का आयोजन अगले वर्ष 26 जनवरी से अहमदाबाद में किया जाएगा। डॉ. एसएस दरिया और डॉ. अरविंद पालावत ने कहा कि कोरोना के बाद पहली बार है कि एैसे विशाल आयोजन में हुए एक-एक सत्र का विवरण देते हुए उन्होंने आयोजन कमेटी की टीम तथा सदस्यों का आभार जताया। डॉ. गिरीश माथुर और डॉ. जीडी रामचंदानी ने बताया कि इस कॉन्फ्रेस को हर पैमामीटर पर सफल बनाने के लिए पुख्ता इंतजाम कीए गऐ थे। समापन समारोह में ऑर्गेनाइजिंग कमेटी के सदस्य डॉ. रमन शर्मा, डॉ. राकेश पारीक, डॉ. संजय मेंदीरत्ता, डॉ. मीनल मोहित, डॉ. रजनीश सक्सेना, डॉ. आशुतोष चतुर्वेदी, डॉ. शैलेश लोढ़ा उपस्थित रहे।

इंसुलिन के इंजेक्शन की चुभन से मिल सकेगी शीघ्र ही निजात
डायबिटीज टाइप 2 से जूझ रहे मरीजों को शीघ्र ही इंसुलिन की सुई की चुभन से मुक्ति मिल सकगी। रविवार को एपिकॉन 2022 के एक सत्र में डायबिटीज के उपचार के लिए काम आने वाली इंसुलिन पर भी व्याख्यान हुए। ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन के.के. पारीक और सेक्रटरी एसीनियर फिजीशियन डॉ. पुनीत सक्सेना ने बताया कि वर्तमान वर्ष चिकित्सा क्षेत्र के लिए बहुत खास है, क्योंकि इंसुलिन के खोज का शताब्दी वर्ष है, जिसने अपने समय की सबसे बड़ी चिकित्सा सफलता हासिल की है। इस खोज ने सर फ्रेडरिक बैंटिंग को अंतरराष्ट्रीय नायक का दर्जा दिलाया। इसके अलावा इंसुलिन को और अधिक डेवलप करने के लिए आने वाले 100 वर्षों की रूप रेखा तैयार की जा चुकी है।

इसी सिलसिले को लेकर आज ‘इन्सुलिन इन नेक्सट 100 ईयर‘ विषय पर आयोजित चर्चा में एसएमएस हॉस्पिटल के सीनियर प्रॉफेसर एवं एंडोक्रायोनोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी ने कहा कि सबसे पहले इंसुलिन जानवरों के पेनक्रियाज से बनाई जाती थी। इंसुलिन का असर कुछ समय तक ही रहता था। बाद में इसमें शोध हुए और सर फ्रेड्रिक बैंटिंग ने नई इंसुलिन की खोज की। इस चुभन से बचाने के लिए वर्तमान में सूंघने वाली इंसुलिन पम्प पर शोध कार्य जारी है और इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है। इस प्रकार के इंसुलिन पम्प का विकास भी किया जा रहा है जिसे आर्टिफिशिल पेनक्रियाज कहा जाता है। ये पम्प शरीर में शुगर की मात्रा सेंस करेगा और उसी के अनुसार शरीर में इंसुलिन प्रवाहित करगा, जिससे बार-बार सुई चुभाने की परेशानी से बचा जा सकता है। इसके अलावा ओरल पिल्स पर भी शोध चल रहा है व कुछ विदेशी कम्पनियों ने तो इसे लांच भी कर दिया है लेकिन कीमत अधिक होने के कारण यह बाजार में सहज ही उपलब्ध नहीं है।

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