जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2023 में पहले दिन दिखा साहित्य, कला और सुरों का बेमिसाल संगम

जयपुर, 20 जनवरी। फेस्टिवल के 16वें संस्करण का आगाज़, कर्नाटिक संगीत की पुरस्कृत गायिका, सुषमा सोमा के सुमधुर स्वरों से हुआ| जनवरी की खूबसूरत सर्द सुबह में सुषमा ने अपने सुरों से शास्त्री संगीत का मानो जादू ही चला दिया| उन्होंने कन्नड़, तमिल और बांग्ला कवियों की कुछ यादगार कविताओं को अपने सुरों में पिरोकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| सच में उस सम्मोहक पल का साक्षी बनकर श्रोताओं ने मृदंगम की थाप के साथ अपनी चक्र ऊर्जा को ऊपर उठते हुए महसूस किया| सोमा के बाद, नाथूलाल ने अपने नगाड़े की थाप से मानो आपके मन की गांठों को खोल, इस निर्मल आनंद को श्रोताओं के लिए सहज बना दिया|

ओपनिंग सेरेमनी को आगे बढ़ाते हुए, फेस्टिवल के प्रोडूसर, संजॉय के. रॉय ने कहा, “आज से 16 साल पहले, जब डिग्गी पैलेस के दरबार हॉल में हमने इस सपने की शुरुआत की थी, तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह फेस्टिवल दुनिया का सबसे बड़ा साहित्यिक शो बन जायेगा… वास्तव में हम चाहते थे कि एक ऐसे माहौल को गढ़ा जाए, जहाँ युवा और छात्र खुद साहित्यकारों से संवाद कर सकें|”

फेस्टिवल की को-डायरेक्टर और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, नमिता गोखले ने इस अवसर पर कहा, “माघ का महीना है, रंगों और पतंगों का मौसम है… और आपका चहेता, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, अपनी पूरी सजधज के साथ फिर से हाज़िर है| साहित्य का ये महाकुम्भ, कथा सरित्सागर निरंतर आपके प्रेम के साथ बढ़ता जा रहा है|”
फेस्टिवल के को-डायरेक्टर और लेखक व इतिहासकार, विलियम डेलरिम्पल ने कहा, “इस ओपनिंग सेरेमनी को देखकर यकीं होता है कि दूसरे फेस्टिवल चाहे जो मर्ज़ी कर लें, पर ये नहीं कर सकते… हमारे पास दुनिया के सरे प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित लेखक हैं, फिर वो चाहे नोबेल प्राइज हो, बुकर हो, इंटरनेशनल बुकर हो, साहित्य अकादमी हो, पुलित्ज़र, डीएससी… हमारे इस साहित्य के कुम्भ में आपको सब मिलेंगे|”
वास्तव में ये गर्व से पीठ थपथपाने का अवसर था| इस फेस्टिवल ने सही मायनों में साहित्य का जश्न मनाते हुए, अनुवाद और अनसुनी आवाजों को भी विश्व पटल पर मुखर किया है|

उदघाटन अवसर पर, वर्ष 2021 में, साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने कीनोट एड्रेस दिया| गुरनाह लेखन के साथ-साथ कैंट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर भी रहे हैं| उन्होंने अपनी सादगी से श्रोताओं के दिलों को छू लिया| श्रोताओं से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा, “लेखन निरंतर चलने वाली प्रकिया का नाम है| ये आपकी दैनिक चर्या का हिस्सा होना चाहिए… लिखते वक्त आप ये मत सोचो कि आपको किसी की प्रेरणा बनना है, या आपको कोई अवार्ड मिलेगा, या आपको कभी नोटिस भी किया जायेगा| आपको बस भटकाव से दूर रहते हुए लिखना है| और यही सच है… इस प्रक्रिया में आप उन विचारों और विश्वासों को सहज पाएंगे जो आपके लिये इम्पोर्टेन्ट हैं और मायने रखते हैं|” फेस्टिवल का पहला दिन साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अनामिका, लोकप्रिय लेखिका अलका सरावगी, बिबेक देबरॉय, पुष्पेश पंत, शशि थरूर, नमिता गोखले, दीप्ति नवल, उषा उथुप, गीतांजलि श्री और डेजी रॉकवेल के नाम रहा|

आज के समय में जब हर जगह मिथकों और पुराण का उपयोग या यूं कहें कि दुरूपयोग किया जा रहा है, ऐसे में फेस्टिवल में ‘ब्रहम पुराण’ सत्र का आयोजन बहुत ही ज़रूरी था| महाभारत, वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण जैसे ग्रन्थों का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले बिबेक देबरॉय ने पुराणों के सम्बन्ध में तथ्यात्मक विचार रखे| नीति आयोग के सदस्य रह चुके बिबके देबरॉय वर्तमान में, प्रधानमंत्री की आर्थिक नीति सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं| उन्होंने बताया कि अपने इतिहास की वास्तविक समझ के लिए सभी को पुराण पढ़ने चाहिएं|फेस्टिवल का एक अन्य सत्र, ‘कथा संधि’ दो दिग्गज लेखिकाओं और उनके बेमिसाल लेखन के नाम रहा| लोकप्रिय लेखिकाओं अनामिका एवं अलका सरावगी ने अपने गहन अनुभव और आने वाली किताबों को श्रोताओं से साझा किया|

‘लीगेसी ऑफ़ वायलेंस’ सत्र में कैरोलिन एल्किन्स और शशि थरूर ने ब्रिटिश साम्राज्य के हिंसा के इतिहास पर बात की| एल्किन्स की किताब, ‘लीगेसी ऑफ़ वायलेंस: ए हिस्ट्री ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर’ में साउथ एशिया में ब्रिटिश शासन के बारे में विस्तार से लिखा गया है| सत्र के दौरान थरूर ने कहा, “हिंसा उपनिवेशी प्रोजेक्ट का अहम् भाग रही है… 19वीं सदी के दूसरे भाग में वो न्याय, सभ्यता की बात करने लगे थे, जिनसे पहले उनका कोई साबका नहीं था|”

फेस्टिवल डायरेक्टर और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नमिता गोखले के बहु-चर्चित और बहु-प्रशंसित उपन्यास ‘जयपुर जर्नल’ का हिंदी अनुवाद ‘जयपुरनामा’ नाम से प्रकाशित हुआ है| इसका अनुवाद प्रतिष्ठित विद्वान पुष्पेश पंत और प्रसिद्ध अनुवादक व लेखक प्रभात रंजन ने किया है| इस किताब को गोखले ने, ‘जेएलएफ’ को लिखा लव-लैटर कहा था| किताब की प्रकाशक अदिति महेश्वरी ने किताब की देसी पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए कहा, “बहुधा अनूदित किताबों के संदर्भ में ‘लॉस्ट इन ट्रांसलेशन’ कहा जाता है, लेकिन ये किताब ‘फाउंड इन ट्रांसलेशन’ कही जाएगी| पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर मौजूद पत्रकार और लल्लनटॉप के संस्थापक, सौरभ द्विवेदी ने कह, “जयपुर फेस्टिवल में लोग बहुत सी वजहों से आते हैं, उनमें एक प्रमुख वजह वही है. जिसके लिए किताब की नायिका रुद्राणी देवी आई थीं|” किताब की पृष्ठभूमि बने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के विषय में उन्होंने कहा, “ये एक जादू है… इस सेल्युलाइड पर सबकी फिल्म चल रही है|”

एक अन्य सत्र, में अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री दीप्ती नवल ने अपनी आने वाली किताब, ‘ए कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड’ पर बात की| आत्मकथा होते हुए भी ये किताब उस देश की कहानी कहती है, जिसे दीप्ती ने अपना बचपन कहा है| इस अवसर पर उन्होंने कहा, “जब मैंने अपने बचपन के बारे में लिखना शुरू किया, तो मैं सिर्फ अपने बारे में नहीं, बल्कि उस समय के बारे में लिखना चाह रही थी, जो मैंने जिया था… इस किताब में वो कहानियां हैं जिन्हें मैंने नहीं, बल्कि उन कहानियों ने मुझे गढ़ा है|” इस किताब में विश्वयुद्ध, इंदिरा गाँधी, 62 और 65 का युद्ध, विभाजन इत्यादि का दौर दर्ज है|

फेस्टिवल के पहले दिन, भारतीय पॉप गायिका उषा उथुप ने भी शिरकत की| पत्रकार विकास झा द्वारा लिखी गई, उथुप की जीवनी, ‘उल्लास की नाव’ का अंग्रेजी अनुवाद सृष्टि झा ने ‘द क्वीन ऑफ़ इंडियन पॉप’ शीर्षक से किया है| इसी किताब की चर्चा पर आयोजित इस सत्र में लेखिका सत्या सरन ने उषा उथुप और सृष्टि झा से संवाद किया| किताब के माध्यम से उषा ने अपने बचपन की कई सुहानी और निराली यादों को साझा किया, जिनमें उनके द्वारा की गई पतंगबाजी भी अहम् थी| उन्होंने बताया, “शायद पतंग उड़ाते हुए ही मैंने ठान लिया था कि मुझे ‘फ्लाई हाई’ पर ही फोकस करना है|” आगे चर्चा में उन्होंने कहा कि मैं संगीत के माध्यम से ही अपनी बात को अच्छी तरह व्यक्त कर पाई| सत्र समाप्ति पर उन्होंने कुछ रोमांचक गीत गाकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया| उन्होंने बता दिया कि वो सही मायनों में पॉप की महारानी हैं| ये ‘पावर पैक्ड’ परफोर्मेंस थी|

दिन का अंतिम सत्र इंटरनेशनल बुकर से सम्मानित कृति ‘रेत समाधि’ की लेखिका गीतांजलि श्री और उनकी अनुवादक डेजी रॉकवेल के नाम रहा| डेजी रॉकवेल ने ‘रेत समाधि’ का अनुवाद ‘टुम्ब ऑफ़ सैंड’ शीर्षक से किया है| यह उपन्यास एक अस्सी साल की महिला के माध्यम से विभाजन और उससे उत्पन्न त्रासदी की कहानी को रोचकता से बयां करता है| सत्र में गीतांजलि और डेजी से संवाद किया तनुज सोलंकी ने| अनुवाद के बारे में बात करते हुए डेजी ने कहा, “किसी कांसेप्ट या विचारधारा का अनुवाद सबसे मुश्किल होता है… ऐसे में आपस सबसे करीबी शब्दों या लक्ष्य भाषा के शब्दों के इस्तेमाल से ही काम चला सकते हैं”|

सफलता की ये कहानियां बताती हैं कि साहित्य और अनुवाद के माध्यम से कैसे दो भिन्न संस्कृतियों को करीब लाया जा सकता है|

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