जयपुर, 04 जुलाई 2025:देशभक्ति, गौरव और उद्देश्य से परिपूर्ण एक भावनात्मक संध्या में, फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर ने अपनी अध्यक्ष डॉ. रिम्मी शेखावत के नेतृत्व में भव्य आयोजन “फ्लो स्वदेश – रैंक्स से रियल्म तक: कमांड में महिलाएं” का आयोजन आईटीसी राजपुताना, जयपुर में किया।
इस प्रेरणादायक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई लेफ्टिनेंट जनरल मंजींदर सिंह, एवीएसएम, वाईएसएम, वीएसएम, जीओसी-इन-सी, साउथ वेस्टर्न कमांड ने, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। अपने ओजस्वी संबोधन में उन्होंने भारतीय सेना के मूल्यों, ईमानदारी से भरे नेतृत्व और हर वर्दीधारी सैनिक के पीछे की भावनात्मक शक्ति को उजागर किया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण पर बल देते हुए कहा कि सैन्य बलों और समाज में महिलाओं की भागीदारी केवल समानता का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रगति और शक्ति का प्रतीक है।
कार्यक्रम में विशेष सत्र के रूप में कैप्टन यशिका हथवाल त्यागी का भी उद्बोधन हुआ, जो कारगिल युद्ध की अनुभवी, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय सेना की लॉजिस्टिक्स डिवीजन की पहली महिला अधिकारी हैं, जिन्होंने गर्भवती अवस्था में भी युद्ध के दौरान सेवाएं दीं।
उन्होंने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे एक महिला ने मां होने के साथ-साथ देश सेवा का धर्म निभाया। उनका यह संदेश दिलों को छू गया –
“सच्ची देशभक्ति शब्दों में नहीं, कर्म में होती है — चाहे सीमा पर हो या घर में। जब महिलाएं उठती हैं, राष्ट्र उठता है।”
कार्यक्रम में हुए संवादात्मक सत्रों के माध्यम से फ्लो सदस्यों ने दोनों गणमान्य व्यक्तियों से सीधे सवाल-जवाब किए, जिससे सैन्य जीवन की असल झलक, युद्ध की कहानियाँ, नेतृत्व की सीख और महिलाओं की भूमिका को नजदीक से समझने का अवसर मिला।
इस गरिमामय आयोजन में सेना के अधिकारी, वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधि, फ्लो सदस्य और शहर के प्रमुख अतिथि शामिल हुए। जयपुर की 200 से अधिक महिला उद्यमियों और प्रोफेशनल्स ने उत्साहपूर्वक भाग लिया — कई महिलाएं तिरंगे के रंगों की वेशभूषा में राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनकर उपस्थित रहीं।
पूरा सभागार भावनाओं, तालियों और देशभक्ति से गूंज उठा। यह संध्या महिलाओं की शक्ति और नेतृत्व की भावना को समर्पित रही, जिसमें देश सेवा के जज़्बे के साथ-साथ नारी शक्ति की ऊंचाईयों को भी सलाम किया गया।
“फ्लो स्वदेश” न केवल भारत की सशस्त्र सेनाओं को श्रद्धांजलि थी, बल्कि नेतृत्व में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का उत्सव भी — यह याद दिलाते हुए कि साहस के कई रूप होते हैं और सेवा का कोई लिंग नहीं होता।