कोविड-19 ने एनीमिया मुक्त भारत के अभियान को पीछे धकेल दिया

Editor-Manish Mathur

जयपुर 29 दिसंबर 2020 : ऐसा लग सकता है कि हर संकट के लिए कोविड-19 महामारी को दोष देना एक फैशन बन गया है। हालांकि, तथ्य भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। विश्व में सबसे अधिक एनीमिया रोगी (39.86 प्रतिशत) भारत में हैं, इसी ने भारत सरकार को एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी), प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया, जिसका उद्देश्य मौजूदा तंत्र को मजबूत बनाना और एनीमिया से निपटने के लिए नई रणनीतियों को बढ़ावा देना है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए 5 वें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, देश के 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 13 में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं।

एनीमिया मुक्त भारत: हम कहां हैं; पर चर्चा करने के लिए, एनीमिया से निपटने के लिए विकासशील राष्ट्र की चुनौतियां, इन चुनौतियों के संभावित समाधान; एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के लिए सटीक प्वाइंट ऑफ विव (पीओसी) डायग्नोसिस और डेटा कितने निर्णायक हो सकते हैं, पर चर्चा करने के लिए हील-तुम्हारा संवाद श्रृंखला का तेरहवां एपिसोड युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया, हील फाउंडेशन द्वारा आयोजित और हेमोक्यु द्वारा संचालित किया गया। एनीमिया के मामलों में कमी मार्च 2018 में शुरू किए गए पोषण अभियान के महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक है। नाति आयोग द्वारा स्थापित पोषण अभियान और राष्ट्रीय पोषण रणनीति के लक्ष्यों का अनुपालन करते हुए, एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) की रणनीति तैयार की गई है; 2018-22 के मध्य बच्चों, किशोरों और प्रजनन आयुवर्ग (15-49 वर्ष) की महिलाओं में प्रतिवर्ष एनीमिया की व्यापकता को 3 प्रतिशत कम करने के लिए।

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के दौरान इस बात पर विचार व्यक्त करते हुए कि एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के लिए सटीक प्वाइंट ऑफ केयर (पीओसी) और डेटा कितना निर्णायक हो सकता है, भारत सरकार के नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (एएचए) के संयुक्त निदेशक डॉ. जे.एल.मीणा ने कहा, “एनीमिया की रोकथाम के लिए जांच/परीक्षण सबसे अच्छा विकल्प है। पहले जांच, फिर रोकथाम और अंत में उपचार। स्क्रीनिंग या जांच गुणात्मक होनी चाहिए, क्योंकि यह वास्तविक स्थिति सुनिश्चित करती है। इसके लिए केयर प्वाइंट (पीओसी) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में प्रोटोकॉल के अनुसार एनीमिया की जांच के लिए गंभीर विवेचन की आवश्यकता है। इस दिशा में गुणवत्ता नियंत्रण भी बहुत महत्वपूर्ण है। आयुषमान भारत में भी एनीमिया का उपचार है।

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के दौरान भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) की वर्तमान स्थिति पर बोलते हुए नई दिल्ली स्थित एम्स के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसीन, एडवांस रिसर्च ऑन एनीमिया कंट्रोल (एनसीईएआर-ए) एंड नेशनल सेंटर फॉर एक्सिलेंस के नोडल पर्सन और एडिशनल प्रोफेसर, डॉ. कपिल यादव ने कहा, “हालांकि, एनएफएचएस-5 डेटा दिखाता है कि महिलाओं और बच्चों में एनीमिया चिंता का प्रमुख विषय बना हुआ है। फिर भी, एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) अभियान 2022 तक 3 प्रतिशत अंक प्रतिवर्ष तक एनीमिया को कम करने के महत्वकांक्षी लक्ष्य के साथ वास्तव में एनएफएचएस डाटा को सम्मिलित नहीं किया गया है, क्योंकि इन्हें हाल ही में सुरू किया गया है। और पिछले ढाई वर्षों में हमने उल्लेखनीय प्रगति की है, क्योंकि एनीमिया की देखभाल नैदानिक परीक्षणों में बदलाव आया है। डिजिटल हीमोग्लोबिन मीटर्स में बहुत सारे लक्ष्य/अभिप्राय होते हैं और व्यापक रूप से बढ़ी हुई मांग के साथ परीक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। तीन चीजें – प्वाइंट ऑफ केयर (डायग्नोस्टिक्स), फूड फोर्टिफिकेशन (कृत्रिम माध्यमों के द्वारा खाद्य पदार्थों की पोषकता बढ़ाना) और मध्यम से लेकर गंभीर एनीमिया के लिए पैरेंटेरल (मुंह के अलावा दूसरे माध्यम से दवाई देना) आयरन, एएमबी के लक्ष्य को प्राप्त करने की कुंजी है।”

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के दौरान बोलते हुए, नीति आयोग की सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ, सुश्री उर्वशी प्रसाद ने कहा, “एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) के लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रौद्योगिकी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें प्रौद्योगिकी पर ध्यानकेंद्रित करना जारी रखना चाहिए। लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, डेटा एकीकरण अत्यधिक आवश्यक है। एक बार डाटा एकीकरण हो जाने के बाद, खंडित डाटा को डिजिटाइज़ करें। डिजिटल प्रौद्योगिकी जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है, इसलिए हम इसका इस्तेमाल एनीमिया मुक्त भारत के लक्ष्यों को पूरा करने में भी कर सकते हैं। डिजिटल हीमोग्लोबिन मीटर का व्यापक रूप से परीक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, और यह और बढ़ेगा।

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के दौरान एनीमिया मुक्त भारत पर विचार-विमर्श के दौरान मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), मातृ स्वास्थ्य की उप-निदेशक, डॉ. अर्चना मिश्रा ने कहा, “मध्य प्रदेश में एनीमिया मुक्त भारत के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कई उपायों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस अभियान को लागु करने के अलावा गर्भवती और एनीमिया की शिकार महिलाओं की काउंसलिंग भी की जा रही है। हमारे प्रोटोकॉल में इंजेक्शन को भी शामिल किया गया है। पीडीएस के माध्यम से डबल फोर्टिफाइड नमक को भी वितरित किया जाता है। हीमोग्लोबिन के लिए सटीक बिंदुवार देखभाल को मापने के लिए डिजिटल डायग्नोस्टिक टूल का भी इस्तेमाल किया जाता है। ”

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के दौरान बोलते हुए एफओजीएसआई की पूर्व अध्यक्ष डॉ. हेमा दिवाकर ने कहा, “सटीक प्वाइंट ऑफ केयर (पीओसी), निदान की भूमिका और डाटा एनीमिया मुक्त भारत (एएनबी) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में निर्णायक हो सकते हैं। पीओसी के साथ कर्नाटक राज्य में हमने जो अनुभव किया है वह अद्भुत है। यदि डिजिटल हीमोग्लोबिन मीटर जैसे सरल उपकरणों का इस्तेमाल प्राथमिक केंद्रों पर किया जाएगा, तो यह असंख्य तरीके से सहायता करेगा। नवाचार और कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता है। टेस्ट, ट्रीट एंड टॉक (टीटीटी) मांग उत्पन्न करने और एनीमिया के लिए लोगों को जुटाने के लिए महत्वपूर्ण रणनीति होगी। टी- टेस्ट या जांच, डिजिटल हीमोग्लोबिन मीटर की सहायता से। टी-ट्रीट या उपचार आयरन फॉलिक एसिड टेबलेट्स (आईएफए) और रेफरल की सहायता से। टी-टॉक यानी काउंसलिंग, लाभार्थी को स्वस्थ्य जीवनशैली के उपायों, शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाने और आयरन, प्रोटीन और विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थों के सेवन के बारे में जानकारी देना।”

युनाइट टू इरेडिकेट एनीमिया ई-समिट 2020, हील-तुम्हारा संवाद के 13 वें एपिसोड के लिए बोलते हुए भारत के उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान (एनएचएम) के अतिरिक्त मिशन निदेशक डॉ. हीरा लाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, “संबंधित मुद्दों में से एक है, जिले और तालुका स्तर पर सरकारी अधिकारियों के बीच जागरूकता की कमी है, ये बात उन्हीं के द्वारा सामने लाई गई थी जब 2018-20 के दौरान वे उत्तर पर्देश के बांदा के त्तकालीन जिलाधिकारी थे।”

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