उच्च गुणवत्ता के शोध पत्रों का प्रकाशन एवं नवाचारों पर प्राथमिकता से होगा शैक्षणिक एवं संस्थागत विकास- डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़ कुलपति महाराणा प्रताप एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर

Editor-Manish Mathur

जयपुर 08 दिसंबर 2020 – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय द्वारा  “एस.सी. आई. एवं स्कोपस अनुक्रमित पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशन” विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमे 1584 पंजीकृत प्रतिभागियों में से 517 ने उत्साहपूर्वक  भाग लिया.

इस वेबिनार के मुख्य अतिथि डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़ कुलपति महाराणा प्रताप एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर ने उद्घाटन भाषण दिया। अपने संबोधन में उन्होंने कृषि विश्वविद्यालयों की भा.कृ.अनु.प. द्वारा की गयी वर्ष 2019 की  रैंकिंग में महाराणा प्रताप एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर की  26 वीं रैंक प्राप्त करने के लिए विश्विद्यालय के  कर्मचारियों  को बधाई दी. उन्होंने  शैक्षणिक और संस्थागत विकास के लिए  वैज्ञानिको को 6 से अधिक प्रभाव कारक वाली शोध पत्रिकाओं में अपने शोध पत्र प्रकाशित करने के लिए जोर दिया और प्रोत्साहित किया।  डॉ. राठौड़ ने वैज्ञानिकों से अपने अनुसंधान क्षेत्रों में नवीन और रचनात्मक होने का आग्रह किया, अपने एच-इंडेक्स को बढ़ाने और सहयोगात्मक बहु-विषयक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के माध्यम से संस्थागत विकास में योगदान करने पर जोर दिया।

 डॉ. मीनू श्रीवास्तव अधिष्ठाता, सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय ने कार्यक्रम का आरंभ करते हुए सभी वक्ताओं का स्वागत किया और बताया  कि अनुसंधान एवं अकादमिक क्षेत्र में शोधार्थी छात्रों के लिए प्रतिष्ठित अनुक्रमित  पत्रिकाओं में शोध प्रकाशन का बहुत महत्व है और शैक्षणिक क्षेत्र में यह  उन्नति का एक मापदंड भी है.

आयोजन सचिव डॉ विशाखा सिंह ने इस वेबीनार के उद्देश्यों और शोध पत्रों के प्रकाशन की शेक्षणिक महत्वता पर प्रकाश डाला.

इस वेबिनार के मुख्य वक्ता डॉ. चिदम्बरम प्रकाश, निदेशक, भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान, फुलिया, नदिया,प.बंगाल ने शोध पत्र लिखने की मूल बातों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने प्रकाशन के लिए एक प्रतिष्ठित  एवं उच्च इम्पेक्ट फेक्टर वाली पत्रिकाओं  का चयन करते समय ध्यान रखने योग्य बिंदुओं पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो काम हम प्रकाशित कर रहे हैं वह अभिनव होना चाहिए और हमेशा अपने पाठकों के लिए एक संदेश देने वाला होना  चाहिए। विभिन्न प्रकार के कागजात, लेखक, लेखक के आदेश, एक पेपर का अनुभाग, सही प्रारूप, सही ग्रामर का उपयोग, पत्रिका के दिशानिर्देश प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने इस बारे में भी चर्चा की कि कैसे अपहरक (predatory) पत्रिकाओं में उपद्रव पैदा होता है और उनसे कैसे बचा जाए। उन्होंने विभिन्न प्लेटफार्मों जैसे गूगल स्कॉलर, स्कोपस, पब्लोंस इत्यादि के बारे में बताया जहां हमारे शोध कार्यों  को बढ़ावा दिया जा सकता है । उन्होंने शोध पत्रों के प्रबंधन और साझा करने और विद्वानों के लेखों के लिए ग्रंथ सूची तैयार करने के लिए उपयोग किए जाने वाले “मेंडेली” सॉफ़्टवेयर के उपयोग पर एक प्रदर्शन भी दिया।

वेबिनार के समन्वयक डॉ. अमित दाधीच ने कार्यक्रम का संचालन किया और उपसंहार प्रस्तुत किया। डॉ. सुमित्रा मीणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया. विश्विद्यालय के शोधार्थी   श्री पीयूष चौधरी ने वेबिनर के सफल संचालन में  तकनीकी सहयोग प्रदान किया। आयोजित वेबिनार को प्रतिभागियों ने अत्यंत रोचक,ज्ञानवर्धक, प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण बताया एवं इसके सफल आयोजन की प्रसंशा की.

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