अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर, जामिया ने “मातृभाषा: मुद्दे, परिप्रेक्ष्य और संभावनाएं” पर ऑनलाइन पैनल चर्चा का आयोजन किया

Editor-Manish Mathur
 जयपुर 22 फरवरी 2021  – अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर, जामिया ने “मातृभाषा: मुद्दे, परिप्रेक्ष्य और संभावनाएं” पर ऑनलाइन पैनल चर्चा का आयोजन किया
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर शैक्षिक अध्ययन विभाग, शिक्षा संकाय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने 21 फरवरी, 2021 को शाम 6.30 बजे से 8:15 बजे तक “मातृभाषा: मुद्दे, परिप्रेक्ष्य और संभावनाएं ” विषय पर ऑनलाइन पैनल चर्चा का आयोजन किया ।
प्रो. एजाज मसीह, अध्यक्ष, शैक्षिक अध्ययन विभाग और डीन, शिक्षा संकाय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, कार्यक्रम के संयोजक थे, जबकि प्रो. शहजाद अंजुम, अध्यक्ष, उर्दू विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, ने चर्चा की अध्यक्षता की। पैनल में डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी, डीन, स्कूल ऑफ एजुकेशनल ट्रेनिंग एंड रिसर्च, आर्य भट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी, पटना; डॉ. संजीव राय, एडजंक्ट प्रोफेसर, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई; और डॉ. कमल मल्होत्रा, विभागाध्यक्ष, जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल, मॉडल टाउन, नई दिल्ली शामिल थे। जामिया मिलिया इस्लामिया के शैक्षिक अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. सज्जाद अहमद और डॉ. मो. जवाद हुसैन ने पैनल चर्चा का समन्वयन किया।
शैक्षिक अध्ययन विभाग के प्रोजेक्ट फेलो डॉ. तारिक अनवर द्वारा पवित्र कुरआन की आयातों के पाठ के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ। इसके बाद, कार्यक्रम के संयोजक प्रो. एजाज मसीह ने मेहमानों का स्वागत किया और बाद के विचार-विमर्श के लिए व्यापक एजेंडे तय किए। प्रो. मसीह ने भारत की भाषाई विविधता के बारे में बात की और आजादी के सत्तर साल से अधिक समय बाद भी कई भारतीय भाषाओं के हाशिए पर होने से सम्बंधित अनुभवजन्य आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने आगे, भाषाओं की सांस्कृतिक स्थिति के बारे में और धर्म के विचारों से वे कितनी अप्रभावित रहती हैं, इसके बारे में बताया, उन्होंने मानव के सामाजिक और बौद्धिक जीवन में भाषा के महत्व को भी रेखांकित किया और इस बात पर नए सिरे से प्रकाश डाला कि भाषा का प्रश्न विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948) के समय से भारत में शैक्षिक नीति निर्माण में कैसे उठाया गया? इस संबंध में, उन्होंने मातृभाषा और अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा के मुद्दों को संबोधित करने पर वर्तमान नीति की जोरदार सराहना की ।
प्रो. शहजाद अंजुम ने पैनल चर्चा के अध्यक्ष के रूप में अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में, मातृभाषा की अवधारणा, लोगों के सांस्कृतिक और शैक्षिक जीवन में इसके महत्व, उर्दू और हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं की स्थिति, शिक्षा की शक्तियों के बारे में और इस तरह के प्रयासों में समस्याओं का सामना करना पड़ा इसके बारे में बात की। उनकी प्रारंभिक टिप्पणियों के बाद, डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी, डॉ. संजीव राय और डॉ. कमल मल्होत्रा ने अपने विचार रखे और उसके बाद अध्यक्ष ने टिप्पणी की।
तीनों पैनलिस्ट ने मातृभाषा के मुद्दों, संस्कृति, पहचान, ज्ञान मीमांसा और शक्ति के साथ इसके संबंध के बारे में बात की। उन्होंने भाषाओं और बोलियों के बीच कुछ लोगों द्वारा किए गए झूठे द्वैतवाद को भी चुनौती दी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की राजनीति के बारे में लंबे समय तक विचार-विमर्श किया और शिक्षा पर मैकॉलेयन के विचारों से अव्गातं कराया। वक्ताओं ने इस तथ्य पर भी अफसोस व्यक्त किया कि अधिकांश भारतीय अपनी-अपनी मातृभाषाओं में शिक्षा देने में असमर्थ हैं। उन्होंने कुछ भाषाओं बनाम दूसरों के आधिपत्य और विश्वविद्यालय स्तर तक सभी संभव भारतीय भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध कराने के विचार पर विमर्श किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि हाल ही की राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 नीति में इन मुद्दों का अधिक ध्यान रखा जायेगा।
पैनल डिस्कशन में देश के कई हिस्सों से 250 से अधिक प्रतिभागी शामिल थे, जिनमें कई विश्वविद्यालय जैसे अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली; दिल्ली विश्वविद्यालय, सागर विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश; मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद; एलएन मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा; महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा; और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रतिभागी शामिल थे।। प्रतिभागियों ने मातृभाषाओं और शिक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल उठाए, जिसका जवाब पैनलिस्टों ने दिया।
लगभग दो घंटे की चर्चा के अंत में, कार्यक्रम के संयोजक प्रो. एजाज मसीह ने माननीय कुलपति, प्रो नजमा अख्तर के प्रति हार्दिक धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने सराहना की कि कार्यक्रम में वर्चुअल उपस्थिति के बावजूद, माननीय शेख अल जामिया हम सभी के लिए निरंतर प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी रही हैं। प्रो. शहजाद अंजुम ने पैनल डिस्कशन के सफल समापन पर संयोजक और समन्वयकों को बधाई दी और कामना की कि आगे भी इस तरह के विचार-विमर्श औपचारिक और अनौपचारिक रूप से होते रहेंगे।

About Manish Mathur