भारत की गिग इकोनॉमी में 90 मिलियन लोगों को नौकरी देने की क्षमता है, देश की जीडीपी में दे सकती है 1.25 फीसदी का योगदान

Editor-Rashmi Sharma

 जयपुर 31 मार्च 2021 : ओला, उबर, स्विगी, अर्बन कंपनी आदि जैसे टेक्‍नोलॉजी प्‍लेटफॉर्म्‍स के सामने आने से पिछले दशक के दौरान गिग इकोनॉमी में उल्‍लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, इसके बावजूद इसमें वृद्धि करने की बहुत संभावनायें हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की नई रिपोर्ट के मुताबिक गिग इकोनॉमी में करीब 90 मिलियन लोगों को नौकरियां देने की क्षमता है और यह निम्न आय वाले कामगारों के लिए नौकरियों के अवसरों का सृजन करते हुए भारत की जीडीपी में करीब 1.25 फीसदी का योगदान दे सकती है। इस रिपोर्ट को माइकल एंड सुसैन डेल फाउंडेशन के साथ साझेदारी में तैयार किया गया है।

‘अनलॉकिंग द पोटेंशियल ऑफ द गिग इकोनॉमी इन इंडिया’ के नाम से तैयार की गई इस रिपोर्ट में गिग इकोनॉमी की क्षमताओं और इसकी गतिशीलता के साथ क्रियान्वयन के बिंदुओं और अवसरों पर प्रकाश डाला गया है। भारत के गैर-कृषि रोजगार में 30 फीसदी लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराने की क्षमता की पहचान के साथ रिपोर्ट में साझा सेवाओं की भूमिकाओं में 5 मिलियन नौकरियों और परिवारों के मामले में लगभग 12 मिलियन नौकरियों की पहचान की गई है, जिन्हें गिग इकोनॉमी के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। इनमें से अधिकांश नौकरियां एमएसएमई और घरेलू क्षेत्रों की होंगी।

बीसीजी प्रिंसिपल और रिपोर्ट के मुख्य लेखक राजा ऑगस्टिनराज ने कहा, ‘रोजगार के अवसरों के सृजन और आर्थिक वृद्धि के मामले में गिग इकोनॉमी भारत के लिए वास्तविक अवसर प्रस्तुत करती है। सूचना और सेवाओं के पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर बड़े पैमाने पर संचालित होने वाले प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म इस अर्थव्यवस्था की क्षमता का लाभ उठा सकते हैं, मांग और आपूर्ति के बीच पारदर्शिता कायम कर सकते हैं और साथ ही औपचारिक एवं वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं। हमारी रिपोर्ट आंकड़ों, विशिष्टता और एक रूपरेखा प्रदान करती हैं, जिसकी मदद से भारत के लिए गिग इकोनॉमी की क्षमताओं का दोहन किया जा सकता है।”

रिपोर्ट में गिग क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के साथ किए गए शोध का इस्तेमाल किया गया है जिससे यह पता चलता है कि वह एक समान समूह नहीं हैं। इसके अलावा गिग वर्कर (कामगार) प्रमुख रूप से आठ क्षेत्रों में विभाजित हैं और प्रत्येक क्षेत्र अलग-अलग कारणों से गिग क्षेत्र में काम कर रहे हैं एवं अलग-अलग रोजगार के मौकों को प्राथमिकता दे रहे हैं। उद्योग औऱ सेवा के भिन्न-भिन्न प्रकारों के आधार पर श्रमिकों के दृष्टिकोण से जरूरी शर्तों को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट को तैयार किया गया है ताकि आजीविका और कमाई के स्रोत के तौर पर गिग वर्क की रुपरेखा तैयार की जा सके।

माइकल एंड सुसैन डेल फाउंडेशन के इंडिया प्रोग्राम्स के डायरेक्टर राहिल रंगवाला बताते हैं, “लॉकडाउन के दौरान हमें भारत में गिग वर्कर्स की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली है। जिन लोगों की नौकरियां चली गई थीं, वह अपने घर के आस-पास ऐसे अवसरों की तलाश कर रहे थे। गिग इकोनॉमी में वैसी क्षमता है कि यह असंगठित क्षेत्र के लोगों को नए हुनर सीखने के मामले में मदद कर सकता है और साथ ही उन्हें स्वयं और परिवार के लिए बेहतर जीवनशैली का निर्माण करने में मदद दे सकता है।”

रिपोर्ट में भारत की गिग इकोनॉमी की क्षमताओं का इस्तेमाल करने के लिए स्पष्ट रूपरेखा और उद्यमियों, निवेशकों, गैर सरकारी संगठनों एवं नीति निर्माताओं की भूमिका का जिक्र किया गया है। इसकी मदद से एक गतिशील और लचीले माहौल का निर्माण किया जा सकता है जो सभी कामगारों या श्रमिकों के लिए समावेशी हो। कई प्लेटफॉर्म्स ने अपनी तरफ से इस दिशा में काफी बेहतरीन काम किए हैं लेकिन गिग इकोनॉमी की पूर्ण क्षमता का दोहन करने के लिए हमें एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है, जो सार्वजनिक नीति, सूचना और डेटा के प्रवाह और सहयोगी सेवाओं से युक्त हो।

 बीसीज में टेक, मीडिया एंड टेलीकॉम प्रैक्टिस के मैनेजिंग डायरेक्टर और पार्टनर विकास जैन ने कहा, “इस रिपोर्ट के जरिए हमारा मकसद एक ऐसे विवरण का निर्माण करना है जो गिग इकोनॉमी के माध्यम से आर्थिक विकास प्रदान करे। साथ ही कम आय वाले श्रमिकों के लिए आजीविका के अवसरों का निर्माण करने के लिए बिजनेस लीडर्स, नीति निर्माताओं और सामाजिक उद्यमियों को डेटा एवं विभिन्‍न जानकारियों से सुसज्जित करेगा।”

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