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ऐतिहासिक गंगू कुंड मे मर रही मछलिया

Editor Rashmi Sharma
जयपुर 13 अप्रैल 2021 –   आयड स्थित ऐतिहासिक गंगुकुंड मे मछलियों की असामयिक मृत्यु समाजसेवियों    और प्रकृतिक प्रेमियो के लिये बनी चिंता का विषय। पर्यावरण विद डॉ सुनील दुबे ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए मत्स्य विभाग एवं मत्स्य वैज्ञानिको से संपर्क कर स्थिति का जायजा लेने और मर रही मछलियों को बचाने की कवायद की।  वयोव्रद्ध मत्स्य वैज्ञानिक एवं सरोवर विज्ञानी डॉ विनायक दुर्वे ने बताया कि कुंड मे यहाँ आने वाले श्रद्धालुओ द्वारा अत्याधिक मात्रा मे आहार और आटे की गोलिया डाली जाती है। उन्होंने कहा कि अत्यधिक खाना खिलाना मछलियों के लिए हानिकारक है।  इसके अलावा  अनिर्धारित मात्रा और केवल कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन से मछलियों में कब्ज हो जाता है।  और शेष रहा आहार कुंड मे सड़ने लगता है।  सबसे पहले, बाहरी लोगों द्वारा खिलाना गलत है।  मछलियों को प्रबंधन द्वारा सुबह और शाम को निश्चित समय पर ही खाना खिलाना चाहिए।  उचित होगा कि यहा पर एक बोर्ड लगाएं कि मछलियों को कोई चारा न दिया जाए।
डॉ दुर्वे ने बताया कि यहाँ पर पानी मे घुलित ओक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिये 1 एच पी की मोटर से पाइप के साथ  छिड़काव नोजल लगाना अच्छा है जिसे विशेष रूप से दोपहर के दौरान चलना चाहिए।  यह पानी को प्रसारित करेगा जो अन्यथा स्थिर है क्योंकि कुंड पानी की सतह तक काफी गहरा है और हवा की क्रिया पानी की तह तक नहीं पहुंचती है।  यह पंपिंग और छिड़काव दिन में दो बार  होना चाहिए। मतस्यकी महाविद्यालय के प्रयास एवं श्री अकील अहमद, उप निदेशक मत्स्य विभाग की सलाह पर से सोमवार को शोधार्थि छात्र विकास उज्जैनिय और चाहत सेवक ने कुंड मे लाल दवा और चूने के घोल का छिड़काव् कर पानी का उपचार किया ।
उन्होंने मृत मछलियों व पानी के नमूने भी एकत्रित किये। उन्होंने मौके पर ही पानी का तापमान, पी एच, ई सी और डी ओ चेक करी। मतस्यकी महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डॉ सुबोध शर्मा ने बताया कि कुंड मे अत्यधिक संख्या मे तिलापिया मछली संग्रहित है जिनका आकार छोटे शिशु से लेकर व्यस्क  आकार तक है। इसमे कुछ संख्या कोई कार्प प्रजाति की  मछली भी है ।  कुंड मे मछली की मृत्यु दर तापमान में वृद्धि, पानी में कार्बनिक पदार्थों के क्षय, ऑक्सीजन की कमी, मछलियों की अधिकता, फूलमाला और अन्य पूजा सामग्री डालने और मछली को आटा इत्यादि खिलाने के कारण होती है।  हानिकारक गैस भी कार्बनिक पदार्थ के क्षय के कारण नीचे से उत्पन्न होते हैं जो की घुलित ओक्सीजन की मात्रा को 2.00 पी पी एम के क्रिटिकल लेवल से भी कम कर देती है। डॉ शर्मा ने बताया कि लाल दवा और चूने के प्रयोग से 2-3 दिन मे जल गुणवत्ता मे सुधार आयेगा। पानी मे फूल माला, पूजन सामग्री, आटा इत्यादि बिल्कुल ना डाले और हो सके तो तिलापिया मछली को कुछ संख्या मे निकाल कर किसी बड़े तालाब मे छोड़ देवें।

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