जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 15वें संस्करण का समापन आशा और सोहार्द्र के संकल्प से हुआ

Editor- Manish Mathur

जयपुर, 17 मार्च। साहित्य प्रेमियों के प्यार और लेखकों की सराहना के साथ, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 15वें संस्करण का समापन हुआ| ‘धरती के सबसे बड़े साहित्यिक उत्सव’ कहलाने वाले ‘हाइब्रिड’ फेस्टिवल ने दुनियाभर से 600 वक्ताओं, कलाकारों और परफ़ॉर्मर को आमंत्रित किया| आमेर फोर्ट में आयोजित हेरिटेज इवनिंग और फेस्टिवल के समानांतर चलने वाले जयपुर म्यूजिक स्टेज के साथ, ये गुलाबी नगरी और भी कई खूबसूरत इवेंट्स की साक्षी बनी| फेस्टिवल में आयोजित सत्रों में भाषा, युद्ध, राजनीति, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन सहित, लैंगिकता, बिजनेस, साइंस, तकनीक, इतिहास, सिनेमा, कला, यात्रा जैसे विविध विषयों को शामिल किया गया| फेस्टिवल के पिछले दिन अपने विचार व्यक्त करने वाले वक्ता थे: ट्राइब आम्रपाली के सीईओ, आकांक्षा अरोड़ा; डिजाइनर अनाविला मिश्रा, राजनेता स्मृति ज़ुबीन ईरानी और उद्यमी हिमांशु वर्धन संग संवाद किया स्तंभकार और लेखिका सीमा गोस्वामी ने| सत्र में, ईरानी ने बताया की 2000 के दशक की शुरुआत में अगर आप साड़ी पहनकर काम पर जाते थे, तो आपको डाउन मार्किट समझा जाता था| आविष्कारों, तकनीक और संवहनियता पर बात करते हुए ईरानी ने कहा, “मैंने महसूस किया कि इस समय हर कोई संवहनियता और संवहन की बात कर रहा है| और ये जानना बेहद दिलचस्प है कि अब जबकि दुनिया इस ओर जागृत हो रही है, भारत में हम बहुत पहले से ही ऐसे क्राफ्ट और टेक्सटाइल के साथ काम कर रहे हैं, जो पर्यावरण को कम हानि पहुंचाए|” चौथे दिन के अंतिम सत्र, साउंड्स ऑफ़ साइलेंस में जेनिल ढोलकिया द्वारा प्रस्तुत नाडा योगा के प्रभावशाली सफ़र को प्रस्तुत किया गया| सत्र के दौरान, ढोलकिया ने अपनी दमदार आवाज़ के माध्यम से तिब्बती मंत्रोच्चार और हीलिंग वाइब्रेशन की महत्ता बताई| इस वाइब्रेशन से बॉडी के प्रत्येक पॉइंट में ऊर्जा पहुंचाई जाती है| तन, मन और आत्मा को संरेखित करने वाली इस प्रक्रिया के साक्षी फेस्टिवल में उपस्थित श्रोता बने|

फेस्टिवल के आखरी दिन की सुबह गायिका प्रिय कानूनगो ने कबीर और मीरा के मधुर गीतों के माध्यम से जीवन में प्रेम और समर्पण का सन्देश दिया|

आज के आकर्षण:

• ए थाउजेंड माइल्स: टू हेल एंड बेक नामक सत्र में, पुरस्कृत फिल्म-मेकर विनोद कापड़ी; पुरस्कृत टीवी जर्नलिस्ट, एंकर और स्तंभकार बरखा दत्त से संवाद किया लेखक चिन्मय तुम्बे ने| कोविड-19 की प्रतिक्रिया स्वरुप भारत ने देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था, लेकिन इसने एक ऐसी राष्ट्रीय आपदा को जन्म दिया, जिसने लाखों अप्रवासी मजदूरों को बेघर, बेरोजगार, भूखे मरने को छोड़ दिया| विनोद कापड़ी की किताब 1232 किलोमीटर सात अप्रवासी मजदूरों के पैदल अपने गाँव तक पहुँचने का दस्तावेज है| प्रशासन द्वारा लावारिस छोड़ दिए गए इन मजदूरों ने, रास्ते की सारी चुनौतियों का सामना करते हुए, सैंकड़ों किलोमीटर का सफ़र तय किया| चर्चा के दौरान, कापड़ी ने कहा, “…क्राइसिस को लेकर स्टेट और मीडिया दोनों ही अस्वीकृति के मोड में चले गए… तो उसके बाद ये जो लाखो मजबूर सड़कों पर थे उनकी कहानी ऐसी ही होगी जो हम लोगों ने देखी|” बरखा दत्त ने बिना रुके, महीनों तक ऐसे मजदूरों की कहानी पूरे देश तक पहुंचाई| उनकी नई किताब, टू हेल एंड बैक: हुमंस ऑफ़ कोविड में उन्होंने भारत में महामारी झेलने वाले लोगों की वास्तविक तस्वीर पेश की| इस दस्तावेज हर वर्ग, जाति और लिंग के लोगों की आपबीती कही गई है| “मुझे जल्द ही एहसास हो गया था कि इस मानवीय संकट को जल्दी ही अनदेखा कर दिया जायेगा,” दत्त ने सत्र के दौरान कहा|

• बुकर प्राइज विजेता लेखा डीबीसी पिएरे ने अपने नए उपन्यास, मीनवाइल इन डोपामिन सिटी की चर्चा कवि जीत थाइल से की| सत्र के दौरान, पिएरे ने प्रयोगात्मक फिक्शन और इस रोबोटिक समय में दिल और आत्मा की अपील पर प्रकाश डाला| 13 मार्च आमेर फोर्ट में हुई, फेस्टिवल की हेरिटेज इवनिंग के बारे में बात करते हुए पिएरे ने कहा, “कल रात हम फोर्ट में थे, वहां मैंने बेमिसाल पारंपरिक सगीत सुना!”

•एक अन्य सत्र में, पुरस्कृत कवयित्री, लेखिका और आलोचक, अरुंधति सुब्रमनियम ने अपनी किताब, वीमेन हु वियर ओनली देमसेल्व: योग, पोएट्री एंड कल्चर पर युवा एकता फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी, पुनीता रॉय से चर्चा की| चर्चा के दौरान, सुब्रमनियम ने व्यक्ति और ब्रह्मांड पर साहित्य, संस्कृति और योग के प्रभाव के बारे में बताया| किताब के बारे में अपनी प्रेरणा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “…मुझे लगता है कि महिलाएं जीवन के किसी मोड़ पर एक अलग ही तरह की अध्यात्मिक राह पर मुड़ जाती हैं|”

•नोबेल पुरस्कार विजेता, अभिजीत वी. बनर्जी ने बड़े ही दिलचस्प अंदाज में अपनी कुकबुक, कुकिंग टू सेव योर लाइफ, के बारे में चर्चा की| सत्र उनके साथ मौजूद थीं आर्टिस्ट शेयेन ओलिविएर और तीन बेस्टसेलिंग किताबों की लेखिका, देवप्रिया रॉय| अपनी किताब के माध्यम से अभिजीत उन ख़ास रेसिपीज के बारे में बताते हैं, जो उन्होंने अक्सर अपने दोस्तों, सहकर्मियों और छात्रों को खिलाई हैं| “…मुझे लगता है कि एक ख़ास तरीके से यह समाज-विज्ञान की किताब है…” बनर्जी ने कहा| सत्र में आगे, उन्होंने खाने और उससे जुड़ी यादों, दोस्ती और समुदाय के बारे में खूब रोचक किस्से सुनाये|

•फ्रंट लॉन में, सीगल बुक्स के पब्लिशर, नवीन किशोर ने अपनी किताब, नॉटेड ग्रीफ पर कवि, आलोचक, कल्चरल सिद्धांतवादी और क्यूरेटर रंजीत होस्कोटे से बात की| सत्र में, किशोर की किताब की प्रशंसा करते हुए होस्कोटे ने कहा, “ये कमाल की बात है कि इतने दशकों से काव्य, और भाषा के क्षेत्र में काम करने के बाद, ये आपकी पहली किताब है|”

•महिलाओं पर आधारित एक दिलचस्प सत्र में सोहेला अब्दुलाली से फेमिनिस्ट लेखिका, प्रकाशक और एक्टिविस्ट उर्वशी बुटालिया ने चर्चा की| सत्र में उन्होंने सोहेला की किताब, वाट वी टॉक अबाउट वेन वी टॉक अबाउट रेप पर चर्चा की| अब्दुलाली ने रेप पर बात करने के हमारे तरीके को बदल दिया| उनकी किताब शारीरिक शोषण पर बेबाकी और संवेदनशीलता से बात करती है और बताती है कि समाज में रेप संस्कृति और उससे जुड़ी शब्दावली को कैसे परिभाषित किया जाता है|

•समकालीन भारत का विचार 20वीं शताब्दी की विशाल हस्ती, नेहरु के इर्दगिर्द घूमता है, भले ही हम इस बात से सहमत हों या असहमत| राष्ट्रवादी और गैर-उपनिवेशवादी संघर्ष के प्रतीक, लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज का सपना देखने वाले, भारत के इतिहास में सबसे लम्बे कार्यकाल तक शासन करने वाले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरु खुद ब खुद मॉडर्न इंडिया के ताने-बाने खींचे चले आये हैं| फेस्टिवल के समापन सत्र में, लेखक त्रिपुरदमन सिंह; बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता, शाज़िया इल्मी, वकील पिंकी आनंद; लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल; नेशनल कमीशन के भूतपूर्व अध्यक्ष, वजाहत हबीबुल्लाह; पत्रकार सौरभ द्विवेदी; नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और पत्रकार, लेखक और स्तंभकार वीर सांघवी| सत्र के दौरान वक्ताओं ने इस विषय पर अपने विचार दिए कि नेहरु देश के सबसे महान प्रधानमंत्री हैं|

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