वैश्विक प्रगति को गतिमान करने के लिए यूनिवर्सल स्वीकृति जरूरी क्यों है

पिछले दशक में दुनिया के कोने कोने में इंटरनेट पहुंच चुका है और साथ ही डिजिटल क्षेत्र में सोशल मीडिया की मौजूदगी और कम्युनिटी स्पेस में भी वृद्धि हुई है। लंबे समय तक विकसित अर्थव्यवस्थाओं के दायरे में रहने वाले इंटरनेट अब हर किसी के जीवन को टच कर चुका है। आज, यह दुनिया के सभी हिस्सों में आजीविका उत्पन्न करने और सर्विस डेलीवेरी करने के लिए एक आवश्यक टूल बन गया है।

पिछले एक दशक में 2 बिलियन से अधिक लोगों ने इंटरनेट का उपयोग किया है और इससे जुड़े व्यक्तियों की कुल संख्या लगभग 5 बिलियन हो गई है। भारत में ही 61% से अधिक आबादी इंटरनेट का उपयोग करती है। पर 2014 से यह वृद्धि बमुश्किल 14% की वृद्धि हुई है। इसलिए जब आज की तारीख में भारत सबसे बड़ी कनेक्टेड ब्रॉडबैंड वाली अर्थव्यवस्था है, इसकी जनसंख्या को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग अभी भी इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं हैं।

यूनिवर्सल एक्सेस और सामूहिक समझ

हालाँकि, इंटरनेट से जुड़ने की क्षमता ही एक्सेस नहीं होती है। इसके लिए जरूरी है कि लोग डिजिटल ईकोसिस्टम का इस्तेमाल अपनी क्षमता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर सकें और इसकी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकें। इसलिए, इंटरनेट हर किसी के लिए सुलभ और समझने योग्य भाषाओं में होना चाहिए, जिससे वे सहज और परिचित हों। इस उद्देश्य का पालन करते हुए, यूनिवर्सल एक्सेप्टेंस (यूए) यह सुनिश्चित करना चाहता है कि यूजर्स अपनी स्थानीय भाषा में इंटरनेट ब्राउज़ कर सकें और इसका उद्देश्य नेट की तकनीकी क्षमताओं को एडजस्ट करना है ताकि नए और उभरते हुए टॉप लेवल के डोमेन (टीएलडी) को मौजूदा टीएलडी के समकक्ष माना जा सके।

इसके अनुसार, यूनिवर्सल पहुंच को आगे बढ़ाने के लिए, इंटरनेट ऐप्लीकेशंस और सिस्टम्स को सभी डोमेन नामों को स्वीकार करने, प्रोसेस करने, उन्हें मान्य करने, स्टोर करने और डिस्प्ले करने में सक्षम होना चाहिए। इसके लिए स्थानीय भाषाओं को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है ताकि भौगोलिक क्षेत्रों में सभी समूहों द्वारा इंटरनेट और इसके मूल कॉम्पोनेंट्स तक पहुंच की अनुमति दी जा सके। इस प्रकार, यूनिवर्सल एक्सेप्टेंस (यूए) उन लोगों को पीछे लाने के लिए एक प्रेरक के रूप में कार्य करता है जो पीछे रह गए हैं और वास्तव में लास्ट-माइल कनेक्टिविटी स्थापित करते हैं।

भारत डिजिटल स्पेस का इस्तेमाल कर इसका लाभ पाने वाला एक उत्कृष्ट उदाहरण रहा है। देश ने विशेष रूप से इंडिया स्टैक के अभ्युदय के साथ, डिजिटल स्पेस में इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नॉलजी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और यूनिवर्सल पेमेंट्स इंटरफेस सहित कई योजनाओं को डिजिटल टूल के माध्यम से लॉन्च और कार्यान्वित किया गया है, जिसने समाज के सभी सेक्शन को लाभ पहुंचाया है। एक अधिक समावेशी इंटरनेट स्पेस को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने पहले ही भारत को सभी 22 आधिकारिक भाषाओं में 15 स्क्रिप्ट्स में लॉन्च कर दिया है, जो एक बहुभाषी इंटरनेट को बढ़ावा देने में सबसे बड़ा योगदान दे रहा है और ईमेल एड्रेस अंतर्राष्ट्रीयकरण का संचालन करके स्थानीय भाषाओं में ईमेल सेवाओं का विस्तार किया है।

 

न्यायसंगत और समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र बनाना

जल्द ही इंटरनेट की पहुँच दुनिया के 8 अरब लोगों तक पहुंचने की संभावना है। नतीजतन आने वाली अगली पीढ़ी को उन्हीं मुद्दों का सामना नहीं करना होगा जिनका सामना वर्तमान में बहुत से लोग कर रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में जब दुनिया पहले की अपेक्षा ज्यादा आपस में जुड़ी हुई है, यूनिवर्सल एक्सेप्टेंस (यूए) का एंट्री करना अति आवश्यक हो जाता है।

एक समावेशी और सुलभ इंटरनेट इकोसिस्टम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने के लिए भारत 28 मार्च 2023 को नई दिल्ली में ग्लोबल यूनिवर्सल एक्सेप्टेन्स डे (यूए दिवस) की मेजबानी करेगा। यूनिवर्सल एक्सेस स्टीयरिंग ग्रुप (यूएएसजी) और इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नंबर्स (आईसीएएनएन) के तत्वावधान में आयोजित यूए डे यूनिवर्सल स्वीकृति की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करेगा और अपने प्रयासों से यह सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, उद्योग संघों और कॉर्पोरेशनों को एक साथ लाएगा। यह ऑनलाइन स्पेस क्रीएट करने पर आम सहमति बनाने के लिए भी काम करेगा जिसे हर व्यक्ति द्वारा एक्सेस किया जा सके।

 

यहाँ न केवल सरकारों से बल्कि डिजिटल डोमेन में अन्य सभी हितधारकों से, उद्योग जगत के नेता, नीति निर्माता, इसे प्रभावित करने वाले और अन्य सेगमेंट यूनिवर्सल पहुंच की प्रतिबद्धता को मुख्यधारा में लाने के बारे में चर्चा करेंगे। सभी लोगों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता से प्रेरित, देश के विभिन्न हिस्सों से प्रभावित करने वालों को एक साथ लाया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यूनिवर्सल स्वीकृति मंच न केवल इंटरनेट के अंग्रेजी बोलने वाले यूजर्स द्वारा बल्कि उन लोगों द्वारा भी आकार दिया जाता है जो दुनिया के लोगों के साथ स्थानीय भाषा में बातचीत करते हैं।

 

अधिकांश नए इंटरनेट यूजर्स भारत जैसे विकासशील दुनिया में उभरेंगे और भारत में 2025 तक 90 करोड़ से अधिक यूजर्स होने की संभावना है। उनकी जरूरतों को पूरा करने वाले इंटरनेट स्पेस के बिना, ग्लोबल ग्रोथ की संभावना नहीं है। इस परिदृश्य को देखते हुए, गरीबी को समाप्त करने, प्लेनेट की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि 2030 तक हर कोई जीवन बेहतर गुणवत्ता वाला जी रहा है, संयुक्त राष्ट्र एसडीजी (ससटेनेबल डेवलपमेंट ग्रोथ) को प्राप्त करने के लिए यूनिवर्सल स्वीकृति महत्वपूर्ण है। मुख्य एसडीजी में एसडीजी 1: शून्य गरीबी, एसडीजी 4: क्वालिटी एजुकेशन, एसडीजी 5: लैंगिक समानता, एसडीजी 8: अच्छा काम और आर्थिक विकास और एसडीजी 10: असमानताओं में कमी शामिल हैं। इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, इंटरनेट को हर किसी की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित होना चाहिए ताकि ग्रोथ निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से हो।

इस बीच, भारत की G20 प्राथमिकताओं में मानवीय, सर्व समावेशी तकनीकी परिवर्तन और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रति अपने संकल्प के साथ-साथ त्वरित, समावेशी और फ्लेक्सबल विकास पर ध्यान देना शामिल है। आखिरकार, यूनिवर्सल स्वीकृति के लिए देश का संकल्प ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के अपने जी20 विषय के अनुरूप है, जबकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी के लिए प्रगति की दिशा में भारत अपनी समग्र प्रतिबद्धता का हिस्सा बन आगे बढ़ रहा है।

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