कमर्शियल लेंडिंग में एमएसएमई के डिफ़ॉल्ट होने की सबसे कम दर का सिलसिला जारी

Edit-Rashmi Sharma

जयपुर 07 मई 2020 – ट्रांसयूनियन सिबिल- सिडबी एमएसएमई पल्स रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण से पता चलता है कि सभी एमएसएमई सेगमेंट में डिफॉल्ट दरें बड़े कॉरपोरेट्स की तुलना में अब भी कम हैं। जनवरी, 20 में बड़े कॉरपोरेट्स का नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) रेट 19.7 प्रतिशत था, जबकि एमएसएमई सेगमेंट में एनपीए की दर 12.5 प्रतिशत थी। जनवरी, 20 में भारत में कुल बैलेंस शीट कमर्शियल लेंडिंग एक्सपोजर ₹ 64.45 लाख करोड़ था, जिसमें एमएसएमई सेगमेंट का हिस्सा ₹ 17.75 लाख करोड़ था। एमएसएमई सेगमेंट के भीतर, माइक्रो सेगमेंट उधारकर्ताओं (कुल क्रेडिट एक्सपोजर ढ1करोड़) ने 2019 में ₹ 92,262 करोड़ के मूल्य के मजबूत ताजा क्रेडिट डिस्बर्सल देखे।

बेहतर एमएसएमई को तलाशना और उन्हें फंडिंग करना

एमएसएमई पल्स के नवें संस्करण में एमएसएमई का संरचनात्मक ताकत पर किए गए मूल्यांकन अध्ययन और उन वर्गीकृत संस्थाओं के बारे में बात की गई है जो महामारी का मुकाबला करने के लिए समक्ष स्थिति में है। जो एमएसएमई सरंचनात्मक रूप से बहुत मजबूत है उनसे उम्मीद थी कि महामारी से पहले वे निम्न लीवरेज और उच्च लिक्विडिटी की स्थिति में होंगी। सिबिल एमएसएमई रैंक (सीएमआर) और एमएसएमई द्वारा उपयोग किए गए क्रेडिट का इस्तेमाल एमएसएमई इकाइयों को चिन्हित करने और इनकी स्थिति की मैपिंग करने के लिए किया जाता है। इस अवधारणा का दो परिदृश्यों में परीक्षण किया गया हैै- पहला जुलाई 2017 से शुरू वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) के लागू किए जाने की अवधि। वहीं दूसरा परिदृश्य जुलाई 2018 से शुरू हुई अवधि है, जिसमें एनबीएफसी में लिक्विडिटी की कमी और मार्च 2019 के बाद एमएसएमई की क्रेडिट ग्रोथ में मंदी थी। इन दो परिदृश्यों में एमएसएमई इकाइयों के सीएमआर और क्रेडिट उपयोग की मैपिंग के जरिए पूर्व में आए मुश्किल समय से पहले की उनकी स्थिति तथा इसक बाद के 12 महीनों मंे उनके प्रदर्शन को ट्रैक किया जा सकता है। इससे उन इकाइयों की क्षमता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है मौजूदा स्थितियों मंे भी काम जारी रख सकती है।

इन निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए ट्रांसयूनियन सिबिल के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ श्री राजेश कुमार ने कहा, ‘‘अध्ययन के परिणाम यह बताते है कि संरचनात्मक से मजबूत एमएसएमई इकाइयां आज की महामारी की स्थिति से खुद का बचाव करने और स्थाईत्व के साथ काम करने के मामले में बेहतर स्थिति में हैं। ये एमएसएमई इकाइयां आज की स्थिति में ़ऋणदाता संस्थाओं से वित्तीय मदद पाने के लिए सर्वाधिक योग्य हंै। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए भी यह एक अवसर है जहां वे ऐसी इकाइयों की पहचान कर सकते हैं और इन इकाइयों को वित्तीय सहायता दे कर एक अच्छा पोर्टफोलियो भी बना सकते हैं। ऐसे लक्षित प्रयासों से ऐसे संकट के समय में अर्थव्यवस्था में भी जान आ सकती है, जब पोर्टफोलियो की जोखिम को भी नियंत्रण में रखा जा सकता है।‘‘

उन्होंने आगे कहा, ‘‘ट्रांसयूनियन सिबिल क्रेडिट सेक्टर, रेग्यूलेटर और सरकार की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह समृद्ध जानकारियां और समाधान दे कर उचित नीतियां बनाने में सहयोग करता रहेगा, ताकि एमएसएमई इकाइयों को वित्तीय सहायता मिलती रहे और क्रेडिट पोर्टफोलियों की स्थिरता भी बनी रहे और अर्थव्यवस्था फिर से सही दिशा में आ सके।‘‘
विश्लेषण में पूर्व की गतिविधियों के मुकाबले लाॅकडाउन का प्रभाव ज्यादा सामने आया है। इस अनुसरण अध्ययन में मुख्य तौर पर मजबूत एमएसएमई इकाइयों की पहचान और महामारी की स्थिति में वित्तीय दबाव का प्रभाव कम से कम झेलने के लक्षणें पर जोर दिया गया है। मौजूदा लाॅकडाउन से पहले एमएसएमई इकाइयों की स्थिति कें बारे में अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि लाॅकडाउन से पहले तीन में से करीब दो एमएसएमई इकाइयां संरचनात्मक तौर पर मजबूत स्थिति में थी और इनमें से आधी तो बहुत मजबूत थी।

माइक्रो सैगमेंट विकास को आगे बढ़ाने वाले वर्ग के रूप में उभरा

एमएसएमई पल्स के इस संस्करण के परिणाम बताते हैं कि एमएसएमई के लगभग सभी उप वर्गों में बैलेंस शीट के आधार पर पिछले कुछ क्वार्टर्स में लैंडिंग कम हुई है। हालांकि माइक्रो सैगमेंट में (कुल क्रेडिट एक्सपोजर 1 करोड़ से कम) तेजी से उभार है और इसमें वर्ष 2019 में 92.3 हजार करोड के नए ऋण दिए गए हैं।

मइक्रो सैगमेंट को ऋण देने वालों में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बैंकों का लगभग समान अंश है। हालांकि जब सैगमेंट को और तोड़ा जाता है तो बहुत छोटी इकाइयों वाले सैगमेंट (कुल के्रेडिट एक्सपोजर 10 लाख से कम) में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का अंश ज्यादा है, वहीं माइक्रो 2 (कुल क्रेडिट एक्सपोजर 50 लाख से 1 करोड़) में निजी बैंकों का अंश ज्यादा है।

माइक्रो सैग्मेंट में नए ऋण सभी राज्यों में दिए गए है। 2019 में टाॅप के 15 राज्यों में कुल ऋण राशि का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा दिया गया था। महाराष्ट्र और तमिलनाडु दोनों में मिला कर नए ऋणों का एक बटा पांचवा हिस्सा दिया गया था। टाॅप 15 राज्यों में 2018 के मुकाबले 2019 में सबसे ज्यादा बढत वाला राज्य राजस्थान था। जबकि सबसे कम बढत ओडिशा में हुई थी।

मइक्रो सैगमेंट के लिए एनपीए की दर नौ प्रतिशत थी जो लघु और मध्यम सैग्मेंट के मुकाबले कम थी। इन सैगमेंट में एनपीए की दर 11 प्रतिशत थी। सभी ऋणदाताओं में मध्यम श्रेणी एमएसएमई इकाइयों की एनपीए दर सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत थी।

सिडबी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर मोहम्मद मुस्तफा कहते हैं, ‘‘माइक्रो सैगमेंट अर्थव्यवस्था के लिए अगला ग्रोथ ड्राइवर हो सकता है और वित्तीय संस्थाओं को उन इकाइयों की पहचान करनी चाहिए जो पिछले खराब समय में भी अच्छे ढंग से काम कर रही थी। इन इकाइयो की पहचान कर मौजूदा समय में उन्हें वित्तीय सहायता देनी चाहिए और इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। एमएसएमई सेक्टर को आगे बढ़ाने और अर्थव्यवसथा को मजबूती देने में बैंक और वित्तीय संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकते है। ये संस्थाएं चतुराई पूर्ण ढंग से ऋण दें और क्षेत्र आधारित डाटा का विश्लेषण कर अपनी नीतियां बनाएं।‘‘

हालांकि पिछली घटनाओं के मुकाबले लाॅकडाउन का प्रभााव ज्यादा नजर आ सकता है, लेकिन अनुसरण अध्ययन में यह बात प्रमुख तौर पर सामने आई है कि सरंचनात्मक रूप से मजबूत एमएसएमई इकाइयों पर इसका सबसे कम प्रभाव पडेगा। लाॅकडाउन से पहले एमएसएमई इकाइयों की संरचनात्मक स्थिति के बारे में अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि इस लाॅकडाउन से पहले तीन मे से दो एमएसएमई इकाइयां बेहतर स्थिति में थी और 30 प्रतिशत बहुत मजबूत स्थिति में थी।

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