दुर्लभ रोगों के मरीज़ों को सरकार की ओर से तुरंत हस्तक्षेप की आवश्यकता, क्योंकि कोविड-19 के बीच हालात बदतर हो रहे हैं

Editor-Manish Mathur

जयपुर, 9 दिसम्बर, 2020ः अन्य बीमारियों की तरह दुर्लभ रोगों के मरीज़ों पर भी कोविड-19 महामारी का असर हुआ है। ये मरीज़ पहले से दवाओं की उपलब्धता, सरकार की ओर से इलाज हेतु स्थायी वित्तपोषण जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे; इनमें ज़्यादातर 10 साल से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं; जिनके लिए अब उम्मीद की कोई किरण बाकी नहीं रही है।
दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप देने में हुई देरी, के बीच कई राज्य सरकारों जैसे केरल, कर्नाटक और तमिलनाडू में अदालत के हस्तक्षेप के चलते दुर्लभ रोगों के मरीज़ों को स्थायी उपचार पाने में मदद मिली है। हालांकि, मरीज़ों की समस्या बड़े पैमाने पर बनी हुई है, जिन्हें कई बार डाॅक्टर के पास जाने, ढेर सारीं जांचे कराने के बाद भी गलत निदान जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है, या सही निदान होने के बावजूद भी दवाओं तथा आजीवन इलाज के लिए पैसे की व्यवस्था उनके लिए बड़ी चुनौती होती है।
इस मुद्दे पर बात करते हुए श्री मंजीत सिंह, प्रेज़ीडेन्ट, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसआॅर्डर सपोर्ट सोसाइटी ;स्ैक्ैैद्ध ने कहा, ‘‘ग्रुप 3 डिसआॅर्डर के तहत निदान किए गए एलएसडी के तकरीबन 190 मरीज़ इलाज के लिए आर्थिक सहायता की इंतज़ार में हैं, महंगे इलाज और अपने पास धन की कमी के कारण उनके पास उम्मीद की कोई किरण नहीं है, ऐसे में वे अपने जीवन की गुणवत्ता के साथ समझौता करने के लिए मजबूर हैं।’’
‘‘इन सभी मरीज़ों का चिकित्सकीय मूल्यांकन राज्य की संबंधित तकनीकी समितियों द्वारा किया गया है और इन्हें संबंधित उपचार के लिए वित्तपोषण हेतु योग्य पाया गया है।’’ उन्होंने कहा।
लाॅकडाउन के बाद से, अनिश्चितता और अधिक बढ़ गई है। कुछ मरीज़ों के पास दवाएं नहीं हैं और वे डाॅक्टर का इलाज रोक देने के लिए मजबूर हैं। अन्य मामलों में वायरस के डर से अस्पताल न जा पाना और सरकार की ओर से कोई सहयोग न मिलना, मरीज़ों के लिए दोधारी तलवार बन गया है। इसके अलावा सीमाएं बंद होने और क्वारंटाइन के एहतियातों के चलते फार्मास्युटिकल आपूर्ति श्रृंखला भी बाधित हुई है।
भारत में उपचार योग्य दुर्लभ रोगों की दवाएं ‘आॅरफन ड्रग’ कैटेगरी में आती हैं, यानि ये दवाएं ऐसी बीमारी का इलाज करती हैं, जिनसे भारत में पांच लाख से अधिक मरीज़ पीड़ित हैं। जीवन के सभी वर्गों से ताल्लुक रखने वाले दुर्लभ रोगों के मरीज़ निदान हो जाने के बाद, बिना सहयोग के दवाओं और आजीवन इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं। दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय नीति का ड्राफ्ट(2020), जिसमें उपचार योग्य दुर्लभ रोगों के लिए स्थायी वित्तपोषण का प्रावधान है, इन मुद्दों को हल कर सकता है। हालांकि फरवरी 2020 में संसद के समक्ष पेश किए जाने के बाद से यह ड्राफ्ट अब तक लंबित है; और अब महामारी के चलते और लंबित हो गया है।
इस मुद्दे पर बात करते हुए डाॅ अशोक गुप्ता,एसएमएस मेडिकल काॅलेज में प्रोफेसर आॅफ पीडिएट्रिक्स, जयपुर, जेके लोन होस्पिटल के दुर्लभ रोग केन्द्र के इनचार्ज तथा राजस्थान में दुर्लभ रोगों की तकनीकी कमेटी के चेयरपर्सन ने कहा, ‘‘हमें दुर्लभ रोगों के मरीज़ों क लिए उचित प्रणाली की आवश्यकता है, इनमें ज़्यादातर मरीज़ बच्चे हैं। कुल मिलाकर दुर्लभ रोगों के मरीज़ों की बड़ी संख्या है। इनमें से कुछ मरीज़ ऐसी अपंगता का शिकार हैं जिन्हें स्थायी सहयोग की आवश्यकता है। दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप देकर इन्हें ज़रूरी सहयोग उपलब्ध कराया जा सकता है, मेरा मानना है कि यह नीति इस समस्या को हल करने में कारगर साबित होगी।’’
दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय नीति बजट प्रावधान के लिए ऐसे ढांचे पर रोशनी डालती है, जिसके माध्यम से सरकारी स्वास्थ्यसेवाओं के ज़रिए दुर्लभ रोगों के इलाज के लिए वित्तपोषण उपलब्ध कराया जाएगा। इससे मरीज़ों एवं उनकी देखभाल करने वालों की चुनौतियां हल होंगी, जो वर्तमान में बड़ी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

About Manish Mathur