Editor-Ravi Mudgal
जयपुर 16 फरवरी 2021 – दौसा का दुर्ग राजस्थान के दौसा नगर में ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह कछवाहा राजवंश की पहली राजधानी थी। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता कार्लाइल ने इसे राजपूताना के क़िलों में रखा। इसकी आकृति ‘सूप’ के समान है।
इस दुर्ग का निर्माण सम्भवत: बड़गूजरों (गुर्जर-प्रतिहारों) द्वारा करवाया गया था। बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया।
यह विशाल मैदान से घिरा हुआ गिरिदुर्ग है। इसमें प्रवेश के दो दरवाज़े हैं-
हाथीपोल
मोरी दरवाज़ा
मोरी दरवाज़ा छोटा तथा संकरा है, जो सागर नामक जलाशय में खुलता है।
क़िले के सामने वाला भाग दोहरे परकोटे से परिवेष्टित है। इसमें मोरी दरवाज़े के पास ‘राजाजी का कुँआ’ स्थित है। इसके पास में ही चार मंजिल की विशाल बावड़ी स्थित है।
बावड़ी के निकट बैजनाथ महादे’ का मंदिर अवस्थित है।
क़िले के अंदर भीतर वाले परकोटे के प्रांगण में ‘रामचंद्रजी’, ‘दुर्गामाता’, ‘जैन मंदिर’ तथा एक मस्जिद स्थित है।
दौसा दुर्ग की ऊँची चोटी पर गढ़ी में नीलकण्ठ महादेव का मंदिर स्थित है। गढ़ी के सामने 13.6 फीट लम्बी तोप स्थित है।
गढ़ी के भीतर अश्वशाला ‘चौदह राजाओं की साल’, प्राचीन कुण्ड तथा सैनिकों के विश्रामगृह स्थित हैं।
राजा भारमल के शासन काल में आमेर के दिवंगत राणा पूरणमल के विद्रोही पुत्र ‘सूजा’ (सूजामल) की हत्या लाला नरुका ने दौसा में की थी, जिसका स्मारक क़िले में मोरी दरवाज़े के बाहर सूर्य मंदिर के पार्श्व में स्थित है। यह जनमानस में ‘सूरज प्रेतेश्वर भौमिया जी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
पत्रिका जगत Positive Journalism