बच्चों के सुधार के लिए अभिभावक करें खुद पर कार्य – योगी मनीष भाई

बीकानेर। मोबाइल डिजिटल क्रांति कि बच्चों तक उपलब्धता से बच्चों का मानसिक धार्मिक एवं आध्यात्मिक पतन अधिक हुआ है, यदि बच्चों को इस से बचाना है अथवा गलत आदतों से सुधारना है तो इसका प्रारंभ माता-पिता को अपने आप से करना होगा क्योंकि बच्चे कहने से नहीं अभी तो माता-पिता के प्रेम और उनके समय देने के साथ उनके व्यक्तित्व में नैतिक बल के आधार पर सुधरेंगे, यह विचार भाव व्यक्तित्व आध्यात्मिक वक्ता एवं लेखक तथा अभिभावक एकता संघ राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष योगी मनीष भाई ने अर्हन इंग्लिश एकेडमी बीकानेर के सिल्वर जुबली समारोह के आगाज के अवसर पर रखें, इस अवसर पर योगी मनीष भाई का सार्वजनिक अभिनंदन भी किया गया।

धर्माचार्यों की मंगलवाणी व सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ अर्हम् वर्ष का आगाज करने वाले स्कूल शाला सचिव सुरेन्द्र कुमार डागा ने बताया कि कार्यक्रम में दाताश्री रामेश्वरानंदजी महाराज व कालीपुत्र कालीचरण, मुख्यमंत्री के विशेष अधिकारी फारुख अफरीदी, सहायक शासन सचिव प्रशासन मेघ राजसिंह पंवार, राज्य स्तरीय अभिभावक संघर्ष समिति के संयोजक तथा आध्यात्मिक वक्ता एवं लेखक योगी मनीष भाई, जयपुर व आरएन ग्लोबल यूनिवर्सिटी के डॉ. आर.एन. बजाज का आतिथ्य रहा।

स्कूलों में माँ सरस्वती की वंदना अनिवार्य हो : कालीचरण महाराज

समारोह को सम्बोधित करते हुए कालीचरण महाराज ने कहा कि स्कूलों में आध्यामिक शिक्षा, उद्योग-व्यवसाय, प्राथमिक उपचार के साथ कला-कौशल की सीख भी दी जानी चाहिए। बच्चों को शारीरिक रूप से भी मजबूत होना बेहद जरूरी है। स्वस्थ शरीर हमें जीवन में अनेक मुश्किलों से बचाता है। बालिकाओं को भी आत्मरक्षा के लिए जूडो-कराटे आदि सीखने चाहिए। कालीचरण महाराज ने कहा कि विद्यालयों में माँ सरस्वती की वंदना अनिवार्य रूप से हो तथा स्कूलों में जाति के कॉलम में केवल हिन्दू लिखा जाए।

नैतिक शिक्षा का एक पीरियड भी जरूरी : रामेश्वरानंदजी महाराज

कार्यक्रम में दाताश्री रामेश्वरानंदजी महाराज ने कहा कि विद्यार्थियों को संस्कारिक शिक्षा मिले। स्कूल संचालकों का कर्तव्य बनता है कि वे रोजाना एक पीरियड नैतिक शिक्षा का जरूर लगाएं। बच्चों को मोबाइल का उपयोग नहीं करने दें इसका विशेष ध्यान अभिभावकों का रखना चाहिए। दाताश्री ने अर्हम् शब्द की विवेचना करते हुए कहा कि अनुशासन एवं मर्यादा के साथ दी गई शिक्षा विद्यर्थी को संस्कारवान बना सकती है और इसी से विद्यार्थी का जीवन उज्ज्वल बनता है।

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